पुष्पक विमान (Pushpak Vima
n) का रहष्य
धर्म ग्रन्थ रामायण हमें उस समय इस्तेमाल किये जाने वाले विमानों जैसे पुष्पक विमान (Pushpak Viman) के इस्तेमाल का वर्णन मिलता है। धर्म ग्रन्थ रामायण में मुख्य रूप से विमानों के होने का उल्लेख देवताओं के पास या लंका में किया गया है।
वर्तमान में वायु यान के अविष्कारक दो वैज्ञानिको को माना जाता है। जिनके नाम विल्बर राइट और आर्विल राइट था ये अमेरिका के वैज्ञानिक थे जिन्हे हम राइट ब्रदर्स नाम से जानते हैं। राइट ब्रदर्स ने बहुत प्रयास किये और 17 दिसंबर 1903 में वायुयान को आकाश में सफलता पूवक उड़ाया। पर इसका विज्ञान प्राचीन ऋषि भारद्वाज ने अपने वैमानिका शास्त्र में लिख दिया था।
ऋषि भारद्वाज का वैमानिक शास्त्र
पुष्पक विमान (Pushpak Viman) हवाई जहाज का कॉन्सेप्ट? आज से 7000 साल पहले वैदिक युग के भारतीय ऋषि भारद्वाज ने अपनी वैमानिका शास्त्र में लिखा था और इसी कॉन्सेप्ट के आधार पर 19 वीं सदी में एक इंडियन वेदिक स्कॉलर शिवकर बापूजी तलपडे ने दुनिया का पहला अनमैन्ड एयर क्राफ्ट बनाया था वो भी राइट ब्रदर्स से पहले।.
वाल्मिकी रामायण में है पुष्पक विमान का जिक्र
पुष्पक विमान (Pushpak Viman) वाल्मिकी रामायण के अरण्य कांड के अनुसार रावण देवी सीता को हर कर एक यान के द्वारा आकाश मार्ग से लंका ले गया था। इस यान का जिक्र वाल्मिकी रामायण के सुन्दर काण्ड के सातवे अध्याय में आता है। जब हनुमान जी सीता को ढूंढते हुए लंका पहुँचते हैं।
हनुमान देवी सीता को ढूढ़ते हुए लंका के हर स्थान पर तलाश करते हैं। तभी हनुमान को लंका में पुष्पक विमान (Pushpak Viman) दिखाई पड़ता है जो सोने से बना था और उस पर रत्न जड़े हुए थे। देखने में लगता है की हंस उसको लेकर उड़ते हों हनुमान उस विमान के नजदीक जाते हैं यह विशाल था।
पुष्पक विमान (Pushpak Viman)
पुष्पक विमान (Pushpak Viman) यह विमान इतना अद्भुत था कि हनुमानजी का ध्यान बार बार उसकी ओर आकर्षित होता है। निश्चय ही हनुमानजी पृथ्वी पर पहली बार ऐसे किसी अद्भुत विमान को देख रहे थे।
पहली बात तो यह है कि पुष्पक विमान कोई साधारण विमान नहीं था तो उस विमान का निर्माण आज कल की तरह नहीं बल्कि मानसिक संकल्प की पद्धति से किया गया था। जिसका जिक्र वाल्मीकि रामायण में कई बार किया गया है।
रामायण में साफ बताया गया है कि पुष्पक विमान (Pushpak Viman) में जो विशेषताएं थीं, वे देवताओं के अन्य विमानों में भी नहीं थी। पुष्पक विमान (Pushpak Viman) का निर्माण स्वयं विश्व कर्मा जी ने किया था और रावण ने निराहार रहकर कठोर तप करके अपने चित्त को एकाग्र करके उस विमान पर अपना अधिकार प्राप्त किया था।
रावण का वध करके श्रीराम और उनकी सेना इसी पुष्पक विमान पर बैठ कर अयोध्या वापस आये थे। अयोध्या आकर श्रीराम ने वह विमान कुबेर के पास भेज दिया था।
रामायण और पुष्पक विमान
विमानों का उल्लेख तो रामायण के बाद द्वापर युग में भी मिलता है, लेकिन पुष्पक विमान (Pushpak Viman) जैसे विमान का उल्लेख रामायण के बाद कहीं और नहीं मिलता है।
पुष्पक विमान (Pushpak Viman) जैसे विमान का निर्माण नहीं किया जा सकता है।यदि आज प्राचीन ग्रंथो और वैमानिक शास्त्र के अनुसार कोई विमान बना भी ले तो पुष्पक विमान की तरह कोई विमान बनाना संभव नहीं
पुष्पक विमान की क्या विशेषताएं
तो आइए जानते हैं कि पुष्पक विमान की क्या विशेषताएं थी? उस दिव्य विमान को बहुत ही सुंदर तरीके से बनाया और सजाया गया था। देवताओं के उत्तम विमानों में सबसे ज्यादा महत्त्व पुष्पक विमान का ही था।
उस विमान की रचना अनेक प्रकार की विशिष्ट निर्माण से की गयी थी। जब वह ऊपर उठकर आकाश मार्ग में उड़ता था तब सौर मंडल के ही किसी चीनी की तरह दिखाई देता था।
पुष्पक विमान अकार और निर्माण
पुष्पक विमान (Pushpak Viman) स्वर्ण के समान चमकता हुआ दिखाई देता था। वह अनेक प्रकार के सुंदर फूलों और रत्नों से सजा हुआ था।
जब वह ऊपर उठकर आकाश मार्ग में उड़ता था तब सौर मंडल के ही किसी तारे की तरह दिखाई देता था। पुष्पक विमान स्वर्ण के समान चमकता हुआ प्रतीत होता था। इस पुष्पक विमान में सुन्दर रत्न जड़े थे जो इसकी शोभा को अत्यधिक बढ़ा देते थे।
उस विमान पर श्वेत भवन बने हुए थे। उस पर सुंदर पोखरों और सरोवरों का भी निर्माण किया गया था। जैसे आज किसी घर में अनेकों कमरे और स्विमिंग पूल बनाए जाते हैं। पुष्पक विमान में हर एक चीज़ बहुत ही मेहनत से बनाई गई थी।
उस विमान में नीलम, चांदी और रत्नो से पक्षियों की सुंदर की प्रतिमाओं का भी निर्माण किया गया था। पुष्पक विमान (Pushpak Viman) में देवी लक्ष्मी जी की भी प्रतिमा स्थापित थी और लक्ष्मी जी की प्रतिमा का अभिषेक करते हुए दो हाथी भी बनाए गए थे। आगे लिखा है कि पुष्पक विमान (Pushpak Viman) को देखकर हनुमानजी बहुत विस्मित होते हैं।
फिर सीताजी के ना मिलने पर वे अत्यंत दुखी हो जाते हैं और इधर उधर देखने लगते हैं। इसके बाद हनुमानजी उस पुष्पक विमान की तरफ एक बार फिर देखते हैं।
यानी अपनी अद्भुत विशेषताएं के कारण वह विमान हनुमान जी का ध्यान बार बार अपनी ओर खींच रहा था। इस विमान को बनाने में तंत्र मंत्र की शक्ति का प्रयोग हुआ था। जैसे रावण का पुत्र मेघनाथ मंत्र और तंत्र दोनों ही साधना में निपुण था। लोग मंत्रों की शक्तियों को अच्छी तरह पहचानते थे और ज्यादातर उसी पर काम करते थे।
पुष्पक विमान (Pushpak Viman) का संचलन
पुष्पक विमान (Pushpak Viman) उसी व्यक्ति से संचालित होता था जिसने उस विमान के संचालन से संबंधित मंत्र को सिद्ध किया हो। इसीलिए उसे संचालित करने वाला अपने मन में जैसे ही संकल्प करता था, वह विमान वहाँ पहुँच जाता था।
द्वापर युग में सतयुग की अपेछा मंत्र शक्ति कमजोर हो जाती है और तंत्र और यंत्र शक्ति बढ़ जाती है। जैसे साल का विमान विमान पुष्पक विमान (Pushpak Viman) की तरह अद्भुत नहीं था और ना ही उसमें ऐसी विशेष क्षमता आई थी। कलयुग में मंत्र शक्ति समाप्त हो जाती है और तंत्र और यंत्र शक्ति प्रभावी हो जाती है।
तंत्र शक्ति का भी लोप
धीरे धीरे तंत्र शक्ति का भी लोप हो जाता है और केवल यंत्र शक्ति रह जाती हैं। आज हम मंत्र तंत्र की विद्या और क्षमताओं को खो चूके हैं और केवल आर्टिफिशियल टेक्नोलॉजी पर काम करते हैं। इसलिए आप चारों और यंत्र शक्ति का ही बोलबाला है।
मन की शक्तियां स्वामी विवेकानंद ने एक मानसिक संकल्प की पद्धति के कई चमत्कारों को अपनी आँखों से देखा था, जिनका पूरा जिक्र उन्होंने मन की शक्ति और जीवन गठन की साधनाएं नामक पुस्तक में किया है। इस विज्ञान को उन्होंने राजयोग का नाम दिया। उनका कहना था कि ये शक्तियां बेहद कठिन है, लेकिन प्रकृति ने किसी व्यक्ति विशेष को ऐसी शक्तियां देकर नहीं भेजा है।
कठिन साधना पूर्वक अध्ययन और अभ्यास से इन्हें कोई भी हासिल कर सकता है। असाधारण शक्तियां हर किसी के मन में है ये विज्ञान वेदों में है, जिसे समझना आज किसी भी सामान्य मनुष्य के वश की बात नहीं।
वैमानिक शास्त्रों को क्यों नहीं समझ पा रहे लोग?
प्राचीन भारत में वैमानिक, शास्त्र और ऐसी विद्याओं की जानकारी देने वाले कई ग्रंथ लिखे गए हैं, लेकिन उन्हें समझना बिल्कुल भी आसान नहीं है। इसके कई कारण हैं। पहला तो यही कि वैदिक संस्कृत अब हमारे लिए सिर्फ एक भाषा बन कर रह गयी है।
दूसरी बात की बहुत सारा ज्ञान नष्ट हो चुका है। आधे अधूरे ज्ञान के साथ किसी भी विषय को ठीक से समझना आसान नहीं और तीसरा की ऐसे ग्रंथों के श्लोक की क्रिप्टोग्राफी भी की गई है। यानी इन ग्रंथों के श्लोक लिखे ही इस प्रकार से गए हैं, जिससे उन्हें समझना आसान ही ना हो।
मतलब यदि आप इन शब्दों का अर्थ संस्कृत के साधारण नियमों या शब्दार्थ उसे लगाएंगे तो आप भ्रमित हो जाएंगे। वैमानिक शास्त्र में 32 रहस्यो की जानकारी आवश्यक बताई गई है।
उन रहस्यों को जान लेने के बाद ही यह विद्या कुछ समझ आ सकती है। समराङ्गणसूत्रधार के लेखक राजा भोज ने लिखा है कि इस विमान की विद्या को खुलकर इसलिए नहीं लिखा गया है क्योंकि यदि यह विद्या गलत लोगों के हाथों में पड़ गयी तो नुकसान अधिक होगा। राजा भोज द्वारा रचित ग्रंथ जिसके यन्त्रविधान नामक 31 वें अध्याय में भी विमान विद्या से जुड़े कुछ श्लोक हैं।
ऋग्वेद में पुष्पक विमान (Pushpak Viman) का वर्णन
ऋग्वेद के चौथे मंडल के 36 वें सूक्त में भी पुष्पक विमान (Pushpak Viman) का वर्णन हुआ है। निश्चित सी बात है कि सनातन ग्रंथों के अर्थ का अनर्थ कर उनमें हर समय अश्लीलता मंसाहार हिंसा खोजने का शौक रखने वाले लोग इन श्लोको को कभी समझ ही नहीं सकते और इस प्रकार ऐसी विद्यालय ऐसे कुपात्रों के हाथों में जाने से बच जाती हैं।
भारत के प्राचीन ज्ञान से संबंधित आज हमारी स्थिति उस बच्चे की तरह बनी हुई है जिसे गणित का कोई फॉर्मूला बता दिया जाए तो वह फॉर्मूला उसे तब तक समझ नहीं आएगा या वह उस फॉर्मूले का इस्तेमाल तब तक नहीं कर पाएगा जब तक वह अपने ज्ञान को बढ़ा नहीं लेता।
और यदि मान लीजिये कि हम उन श्लोकों और रहस्यों को समझने में कामयाब भी हो जाए तो भी उस पद्धति से विमानों का निर्माण कठिन ही होगा क्योंकि जो संसाधन उन्हें बताए गए हैं, वे संसाधन या तो आज उपलब्ध नहीं है या फिलहाल उनकी जानकारी किसी को नहीं है क्योंकि आधुनिक विज्ञान की खोज अभी अधूरी है।
रिसर्च पेपर क्रिटिकल स्टडी ऑफ द वैमानिक शास्त्र
समझ ना पाने के कारण ही 1974 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु का रिसर्च पेपर क्रिटिकल स्टडी ऑफ द वैमानिक शास्त्र ही वैमानिक शास्त्र पुष्पक विमान (Pushpak Viman) की टेक्नोलॉजी को मात्र एक कल्पना घोषित कर देता है।
हालांकि एक खास वर्ग के लोगों को छोड़कर कोई भी इन्स्टिट्यूट या वैज्ञानिक इस रिसर्च पेपर को सीरियसली नहीं लेता है।
क्योंकि ये रिसर्च पेपर केवल वर्तमान के ज्ञान पर आधारित है और वर्तमान ज्ञान ही विज्ञान नहीं होता। इसे एक ताजा उदाहरण से समझिए। वर्तमान ज्ञान के आधार पर अब तक यही माना जाता था।
अंतरिक्ष में कोई ध्वनि या साउंड नहीं है क्योंकि अंतरिक्ष का ज्यादातर स्थान अनिवार्य रूप से एक निर्वात है जो ध्वनि तरंगों के प्रसार के लिए कोई माध्यम नहीं देता है। लेकिन हाल ही में पर सीएस गैलेक्सी क्लस्टर के सेंटर में मौजूद ब्लैक होल की ध्वनि तरंगों ने इसको गलत सभी कर दिया है।
अब ज्ञात हुआ है की विशेष प्रकार की ध्वनि तरंगें निर्वात में भी आगे बढ़ सकती हैं।
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