शिवलिंग (Shiv Ling) क्या है शिवलिंग पर जल चढाने का कारण 2023

शिव लिंग (Shiv Ling) का वास्तविक अर्थ क्या है?

शिव लिंग (Shiv Ling) क्या प्रदर्शित करता है? वह किसका प्रतीक है? इन सभी तथ्यों को आज हम आपके समक्ष रखेंगे।लोगो ने जो भ्रांति समाज में शिवलिंग के प्रति फैला रखी है उसे दूर करना अति आवश्यक है।

कुछ लोगों ने शिवलिंग (Shiv Ling) का इतना गलत अर्थ बता रखा है। कि हम उसकी व्याख्या करना भी पाप समझते हैं, और महादेव का अपमान समझते हैं।

इस प्रस्तुति द्वारा आप शिवलिंग (Shiv Ling) का संपूर्ण अर्थ जानेंगें। जिससे लोगों के मन से यह भ्रांति दूर हो सके।

संस्कृत भाषा अनुशार शिव लिंग (Shiv Ling) का अर्थ

संस्कृत भाषा में जिस प्रकार, पुर्लिंग का अर्थ, पुरुष का प्रतीक और स्त्री लिंग का अर्थ स्त्री का प्रतीक होता है। उसी प्रकार शिवलिंग का अर्थ शिव का प्रतीक है।

शिव को जानने के लिए पढ़े – कौन हाँ शिव जी?

पुराणो में वर्णित एक कथा

पुराणो में वर्णित एक कथा के अनुसार ऋषियों ने सूतजी रोमहर्षणजी सूत जाति के थे इसलिए ‘सूतजी’ के नाम से प्रसिद्ध हुए से प्रश्न किया कि सभी देवताओं की पूजा मूर्ति स्वरूप में होती है, लिंग में नहीं। परंतु भगवान शिव की पूजा लिंग और मूर्ति स्वरूप दोनों में क्यों की जाती है?

फिर ‘सूतजी’ जी ने बड़े विनम्र भाव से कहा, आपका यह प्रश्न बहुत अद्भुत और पवित्र है।एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्म रूप होने के कारण निराकार कहलाते हैं।

रूपवान होने के कारण उन्हें साकार भी कहा जाता है और इसलिए वे साकार और निराकार दोनों है।

शिवलिंग (Shiv Ling) शिवजी के निराकार स्वरूप का प्रतीक है।

इसी तरह भगवान शिव का मूर्ति स्वरूप भी उनके साकार स्वरूप का प्रतीक है।
साकार और निराकार रूप होने से ही वे परमात्मा, स्वंमभू है। यही कारण है कि सब लोग शिवलिंग (Shiv Ling) को निराकार और मूर्ति को साकार दोनों ही रूपों में पूजते हैं।

महादेव से भिन्न दूसरे देवता साक्षात स्वंमभू नहीं है, शिवलिंग एक ऐसी आकृति है जिसमें संपूर्ण ब्रह्मांड व्याप्त है। आपने शिवलिंग को अलग अलग आकारों में देखा होगा, जिनमें से कुछ शिवलिंग मनुष्य द्वारा बनाए गए हैं और कुछ शिवलिंग भगवान द्वारा बनाये गये है।

परंतु अगर हम प्रमुख 12 ज्योतिर्लिङ्ग के संदर्भ में चर्चा करें तो उन सभी का आकार एक दूसरे से भिन्न है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अलग अलग उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अलग अलग शिवलिंग (Shiv Ling) बनाए गए हैं।कुछ शिवलिंगों को स्वास्थ्य के लिए बनाया गया है, कुछ को विवाह के लिए व कुछ को ध्यान साधना के लिए स्थापित किया गया है।

इन सभी निराकार रूपी भगवान शिवलिंग (Shiv Ling) के प्रतीक में समानता अवश्य है कि इनकी बनावट अंडे के आकार की है।

शिवलिंग (Shiv Ling) ब्रह्मांड की आकृति भी है।

शिवलिंग स्त्री या पुरुष का प्रतीक न होकर सम्पूर्ण ब्रह्मांड के शून्य निराकार का प्रतीक है।इन्हें किसी एक शैली में बांधकर नहीं रखा जा सकता।

अगर आप वैज्ञानिक को द्वारा लिए गए अंतरिक्ष के चित्र को देखते हैं तो आप पाएंगे कि पुराणो के अनुसार संपूर्ण आकाश स्वयं एक लिंग है और शिवलिंग समस्त ब्रह्माण्ड की एक धुरी है।

शिवलिंग (Shiv Ling) अनंत हैं।

शिवलिंग शिवलिंग (Shiv Ling) का ना तो आरंभ है और ना ही अंत।ब्रह्मांड में दो ही वस्तुएँ है ऊर्जा और पदार्थ। हमारा शरीर पदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है।इसी प्रकार प्रकृति पदार्थ और शिव भक्ति ऊर्जा का प्रतीक बनकर शिवलिंग (Shiv Ling) कहलाता है।

ब्रह्मांड की समस्त ऊर्जा शिवलिंग (Shiv Ling) में समाहित है।वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की ही आकृति है। शिवलिंग के साथ कर्मकांड इसलिए किए जाते हैं ताकि शिवलिंग में अधिक से अधिक ऊर्जा को समाहित किया जा सके और जब हम शिवलिंग (Shiv Ling) के पास बैठे तो हमें उस ऊर्जा का लाभ भी अधिक से अधिक मिले और हमारी आध्यात्मिक उन्नति भी हो सके।

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै नकाराय नमः शिवाय

इसका अर्थ  है।

जो शिव नागराज वासुकी का हार पहने हुए हैं, तीन नेत्रों वाले हैं तथा भस्म को सारे शरीर पर लगाए हुए हैं। इस प्रकार महान ऐश्वर्य से संपन्न वे शिव, नित्य, अविनाशी तथा स्वयंभू है। दिशाएँ जिनके लिए वस्त्रों का कार्य करती है ऐसे निराकार स्वरूप शिव को हम नमस्कार करते हैं।

भगवान शिव (Shiv) को जल क्यों चढ़ाया जाता है?

हम पौराणिक कथा के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे कि भगवान शिव (Shiv) को जल क्यों चढ़ाया जाता है और इसका क्या महत्त्व है?हिंदू धर्म में त्रिदेव अर्थात भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव (Shiv) को सर्वोच्च देवता माना गया है।

भगवान ब्रह्मा रचना करने वाले हैं, भगवान विष्णु पालन करने वाले हैं और भगवान शिव (Shiv) रक्षक और संहार कर्ता के रूप में जाने जाते हैं। वेदों और प्राणों में भगवान शिव के रुद्र रूप की महिमा का वर्णन मिलता है।

शिव महापुराण अनुसार विष पीने का कारण

शिव महापुराण में एक प्रसंग आता है कि जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया। तो उसमें से जो पहला रत्न निकला वह था हलाहल विष। जब हलाहल विष निकला तो सभी देवताओं और असुरों में अत्यंत भय उत्पन्न हो गया। क्योंकि विष इतना गर्म और जहरीला था कि इसके प्रभाव से वातावरण का रंग बदलने लगा और बहुत गर्मी उत्पन्न होने के कारण तापमान बढ़ने लगा।

फिर सभी देवता भगवान विष्णु के पास जाते हैं और इसका समाधान करने के लिए प्रार्थना करते हैं कि इस विष को कौन रखेगा। तब भगवान विष्णु उन्हें बताते हैं कि इस विष को केवल एक ही देव धारण कर सकते हैं और वे हैं भगवान शिव। तुम सब भगवान शिव के पास जाओ और उनसे प्रार्थना करो।

फिर सभी देवता भगवान शिव के पास जाते हैं और आग्रह करते हैं। भोलेनाथ हम सब पर दया करें इस विष से हमारी रक्षा करें। भगवान शिव बहुत ही भोले हैं।

भगवान शिव देवताओं और असुरों के साथ साथ समस्त पृथ्वी लोक की रक्षा करने के लिए विष को पी लेते हैं। लेकिन विष को अपने कंठ से नीचे नहीं जाने देते हैं और अपने कंठ में ही रोक लेते हैं।

हलाहल विष पीने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया। तभी से भगवान शिव को नीलकंठ नाम से जाना जाता है। विष पीने के बाद भगवान शिव के शरीर का ताप बढ़ गया और उन्हें भयंकर गर्मी लगने लगती है।

वे अपने आप को ठंडा करने के लिए चन्द्रमा को अपने सिर पर धारण करते हैं जिससे उन्हें ठंडक मिलती है।लेकिन फिर भी उनके शरीर का ताप काफी अधिक रहता है।

यह देखकर भगवान विष्णु तब देवराज इंद्र से कहते हैं इंद्र देव आप भगवान शिव के ऊपर अपनी जलधारा प्रवाहित करें। देवराज इंद्र तब भगवान शिव के ऊपर जलधारा की अत्यधिक वर्षा करते हैं।

जिससे भगवान शिव को अत्यधिक शीतलता मिलती है। फिर भगवान शिव के ताप को कम करने के लिए सभी देवता भगवान शिव के ऊपर जल, दूध चढ़ाते हैं। फिर उनके मस्तक और शरीर पर चंदन और कुमकुम इत्यादि का लेप लगाते हैं।

फिर भगवान शिव सभी देवताओं पर प्रसन्न होते हैं। और कहते हैं कि हे देवों तुमने जो कुछ भी मुझे अर्पण किया उससे मुझे अत्यंत शीतलता प्राप्त हुई है। मैं तुम सभी पर अत्यंत प्रसन्न हूँ और तुम्हें विजयी होने का वरदान देता हूँ।

फिर भगवान शिव कहते हैं कि जो भी भक्त मुझ पर जल और दूध का अभिषेक करेगा,और चंदन कुमकुम का लेप लगाएगा, उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। तभी से भगवान शिव पर जलाभिषेक किया जाता है।

और सभी लोग भगवान शिव के ऊपर दूध और जल चढ़ाते हैं। और चंदन कुमकुम का लेप लगाते हैं, जिससे भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। और अपने भक्तों पर दया करते हैं और उनको अपार खुशियां प्रदान करते हैं।

इसी कारण शरीर का ताप काफी अधिक होने के कारण तब से ही भगवान शिव बर्फीले कैलाश में निवास करते हैं।

हमारा उद्देश्य केवल आपके ज्ञान में वृद्धि करना व धर्म के प्रति आपकी जिज्ञासा को बढ़ाना है।

अगर हमसे कोई त्रुटि रह गई हो तो हमें क्षमा करें।

Uniform Civil Code 2023 (UCC) Advantages : समान नागरिक संहिता के फायदे

10 thoughts on “शिवलिंग (Shiv Ling) क्या है शिवलिंग पर जल चढाने का कारण 2023”

Leave a Comment