मदर टेरेसा (Mother Teresa) कौन थी ?
मदर टेरेसा (Mother Teresa) का नाम सुनकर दिमाग में एक तस्वीर बनती हैं जिसमे नीली धारियों वाली सफेद धोती में लिपटी हुई एक महिला जो बीमार और गरीब लोगों की सेवा करती थी। मदर टेरेसा को 4 सितंबर 2016 को रोमन कैथलिक संत की उपाधि दी गयी।
क्रिस्टोफ़र हिचन्स (ब्रिटेन में जन्मे, अमेरिकी लेखक, पत्रकार) से मदर टेरेसा को रोमन कैथलिक संत की उपाधि दिए जाने पर जब पूछा गया तो उन्होंने कहा बिना किसी सबूत के जब किसी बात का दवा किया जासकता है तो उसे बिना किसी सबूत के ख़ारिज भी किया जा सकता है।हमारे देश जिस व्यक्ति को नोबेल शांति पुरस्कार और भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका हो, उसके किए गए कार्य धर्म के लिए थे या सेवा के लिए इसका प्रश्न ही ख़त्म हो जाता है।
मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की शुरुआत
अल्बेनिया से आई एक नन ने 7 अक्टूबर 1950 को मदर टेरेसा ने कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी नाम की संस्था की स्थापना की। अब नाम चैरिटी है सो काम आप काम समझ ही गए होंगे। 1971 में जब बांग्लादेश युद्ध के हालात बने तो पूरा कोलकाता शरणार्थियों से भर गया।
हर तरफ स्टैंड, चौराहे, पार्क ऐसी कोई जगह नहीं थी जहाँ टेंट लगाकर लोग ना रह रहे हो। इनमें मासूम बच्चे, विकलांग और महिलाएं भी शामिल थी। ऐसे हजारों बच्चों और बूढ़ों को मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी ने अपने यहाँ सरण दी पर इसके पीछे मतलब कुछ और था।
ये संस्था रोमन कैथलिक चर्च से जुड़ी हुई है और आज भी 133 देशों में इसकी शाखाएं है,ये संस्था समाजसेवा का काम करती है। ये तो हो गई आधिकारिक बात पर बात इतनी होती तो फिर कोई बात ही नहीं होती। आगे की बात क्या है? या, अंदर की बात क्या है?
आइए जानते हैं 1950 का भारत गरीबी और भुखमरी का मारा हुआ था जबकि पश्चिम में यूरोप और अमेरिका जैसे देश फल फूल रहे थे। ऐसे में अल्बेनिया से आई एक नन मदर टेरेसा (Mother Teresa) ने कोलकाता में समाजसेवा का काम शुरू किया और पूरी दुनिया में मसीहा की तरह देखी जाने लगी।
मदर टेरेसा (Mother Teresa) इसाई धर्म का प्रचार
मदर टेरेसा (Mother Teresa)चंदा मिलना शुरू हुआ और इतना मिला की एक बार रोमन चर्च का पूरा खाता इस चंदे के सामने बौना पड़ गया। समाज सेवा तक तो बात ठीक थी, लेकिन मदर टेरेसा (Mother Teresa) की समाज सेवा धर्म से जुड़ी रहीं।और जहाँ धर्म का नाम जुड़ता है, वहाँ बवाल तो हो ही जाता है। 1979 में जब उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला तो अवार्ड लेते हुए उन्होंने अबॉर्शन यानी गर्भपात को दुनिया में सभी बुराइयों की जड़ बताया।
ईसाई धर्म की कैथोलिक परंपरा में गर्भपात हमेशा से हीन भावना से देखा जाता है। नोबेल पुरस्कार मिलने के अगले साल ब्रिटेन में एक चर्चित अखबार में लेख छपा जिससे चर्चित पत्रकार जर्मेन ग्रीर ने लिखा था। ग्रीर ने मदर टेरेसा को एक धार्मिक साम्राज्यवादी बता दिया और साथ ही लिखा कि सेवा के जरिये वो गरीबों में इसाई धर्म फैलाना चाहती है।
मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की जाँच
इसके बाद आने वाले सालों में मदर टेरेसा के नाम के साथ कॉन्ट्रोवर्सीज जुड़ती रही। लाइन सेट एक विश्व स्तरीय मेडिकल जर्नल है। इसके संपादक डॉक्टर रॉबिन फॉक्स ने 1991 में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के कोलकाता केंद्र का दौरा किया। कोलकाता केंद्र का फॉक्स दौरान नोट किया कि इन केंद्रों में साफ सफाई ना के बराबर थी। कैंसर के मरीजों तक को सिर्फ एक गोली लेकर निपटा दिया जाता था की रिपोर्ट के अनुसार इन केंद्रों में बीमारों का इलाज नहीं किया जाता था। सिर्फ उनके मरने तक उनकी कुछ सेवा होती थी।
Hell’s Angel यानी नरक का फरिश्ता
इसके बाद 1994 में मदर टेरेसा के ऊपर बनी एक डॉक्यूमेंट्री रिलीज हुई। नाम था Hell’s Angel यानी नरक का फरिश्ता। इस डॉक्यूमेंट्री को मशहूर अंग्रेजी पत्रकार क्रिस्टोफर हिचेन्स (ब्रिटेन में जन्मे, अमेरिकी लेखक, पत्रकार) ने बनाया था।
क्रिस्टोफर हिचेन्सबाद में मदर टेरेसा पर किताबें लिखी। नाम था “द मिशनरी पोजीशन:मदर टेरेसा इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस” इसमें उन्होंने मदर टेरेसा के बारे में लिखा, मदर टेरेसा गरीबों की नहीं, गरीबी की दोस्त है। वो कहती हैं कि कष्ट और पीड़ा ईश्वर का उपहार है।
डॉक्टर अरूप चटर्जी के खुलासे
ज़िंदगी भर उनकी लड़ाई गरीबी से नहीं बल्कि गरीबी के एकमात्र समाधान से रही, जो कि है। महिलाओं का सशक्तिकरण और जानवरों की तरह जबरदस्ती बच्चे पैदा करवाने से उनकी मुक्ति। इस चैरिटी में काम कर चुके डॉक्टर अरूप चटर्जी ने अपनी किताब मदर टेरेसा द फाइनल वर्डिक्ट में ऐसे ही कई दावे किये।
किताब मदर टेरेसा की संस्था में काम कर चुके लोगों के साथ किए गए इंटरव्यूस पर आधारित थी। किताब के अनुसार मदर टेरेसा ने समाज सेवा के अपने कामों को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया था। संस्था का दावा था कि वो सड़कों से बीमार लोगों को उठाती थी।
चैटर्जी अपनी किताब में बताते हैं मदर टेरेसा (Mother Teresa) संस्था को बीमार लोगों के बारे में बताया जाता था तो वो अधिकतर बहाना बनाया करते। ये दूसरी जगह से मदद लेने की बात कहते थे चटर्जी के अनुसार संस्था के पास बहुत सी ऐम्बुलेंस भी थी, लेकिन बीमार लोगों की बजाय इसे नन को इधर से उधर ले जाने में इस्तेमाल किया जाता।
संस्था का एक और दावा था कि वहाँ हर रोज़ हजारों लोगों को खाना खिलाया जाता है। जबकि डॉक्टर अरूप चटर्जी की किताब के अनुसार असल में केवल दो से तीन रेस्पी ही थीं जो लगभग 300 लोगों को खाना खिला सकने में ही सक्षम थे। एक टीवी शो के दौरान डॉक्टर चटर्जी ने संस्था को लेकर कई और खुलासे किये।
उन्होंने बताया कि किस तरह संस्था में मरीजों के साथ कैदियों जैसा बर्ताव किया जाता था। किसी से मिलने या बाहर जाने पर भी रोक थी।
गरीबो के साथ बुरा व्यवहार
किसी भी हालत में मरीज मदर टेरेसा (Mother Teresa) संस्था में अपने जीवन का अंतिम समय गुजारने पर मजबूर थे। डॉक्टर चटर्जी जी संस्था के बारे में बताते हैं कि वहाँ गरीब लोगो का ठीक तरीके से इलाज भी नहीं होता था।
मदर टेरेसा (Mother Teresa) का विश्वास था कि पीड़ा सहकर ही मनुष्य ईश्वर के करीब पहुँच सकता है, इसीलिए वो पीड़ा को ईश्वर का आशीर्वाद मानती थी। अपनी इस मान्यता के विरुद्ध जब वो खुद बीमार होती तो देश विदेश के महंगे हॉस्पिटल्स में अपना इलाज करवाया करती।
संस्थान में बच्चों के इलाज के लिए उनके माता पिता को एक फार्म भरना अनिवार्य होता था, जिसमें लिखा होता था कि वो अपने बच्चों पर अपना अधिकार त्याग कर उन्हें संस्था के हवाले करते हैं। इस फॉर्म के बिना किसी भी बच्चे का इलाज इस संस्थान में संभव नहीं था।
मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के चन्दे का गलत इस्तेमाल
चटर्जी ने अपनी किताब में मदर टेरेसा (Mother Teresa) संस्था को मिलने वाले चंदे पर भी सवाल उठाया। उन्होंने लिखा कि संस्था का कभी ऑडिट(जाँच) नहीं हुआ और चंदे के एक बड़े हिस्से को समाज सेवा की बजाय रोमन कैथलिक चर्च में जमा कर दिया जाता था।
चंदा देने वाले लोगों पर भी सवाल उठे ये ऐसे लोग थे जो भ्रस्टाचार में लिप्त पाए गए इनमे अल्बेनिया के तानाशाह का नाम शामिल था। साथ ही मदर टेरेसा (Mother Teresa) ने चार्ल्स कीटिंग से भी पैसा लिया था, जिनका नाम अमेरिका में एक बड़े आर्थिक घोटाले से जुड़ा था।
इन सब विवादों के बावजूद मदर टेरेसा (Mother Teresa) का नाम 1997 में उनकी मृत्यु तक महानता का परिचायक बना रहा। कहानी वहीं खत्म हो जाती, लेकिन धर्म की मृत्यु के बाद जीवन में भी आस्था इसीलिए मृत्यु के बाद भी ये कहानी जारी रही है।
Mother Teresa को रोमन कैथलिक संत की उपाधि
मदर टेरेसा (Mother Teresa) को 4 सितंबर 2016 को रोमन कैथलिक संत की उपाधि दी गयी। ईसाई समाज में संत की उपाधि मिलना इतना आसान नहीं होता। अगर व्यक्ति मरने के बाद भी चमत्कार कर सके तब उसको ये उपाधि दी जाती है।
और चर्च ही यह उपाधि दे सकता है अब चर्च को मदर टेरेसा (Mother Teresa) के मरने के बाद ऐसे चमत्कार का इन्तजार था। और ये चमत्कार दिखये और बातये गए पहला चमत्कार अपनी मृत्यु के बाद 2002 में मोनिका बेसा नाम की लड़की का ट्यूमर ठीक करके किया।
मोनिका को पेट में ट्यूमर था उसने मदर टेरेसा के फोटो को उस ट्यूमर पर रखा और ट्यूमर गायब हो गया। दूसरा चमत्कार 2008 ब्राजील के एक व्यक्ति ने बताया मदर टेरेसा (Mother Teresa) के कारण उसके कई ट्यूमर ठीक हो गए। इन चमत्कारों की प्रमाणिकता कैसे सिद्ध की गयी किसी को नहीं पता। लेकिन इन चमत्कारों की वजह से मदर टेरेसा को 4 सितंबर 2016 को रोमन कैथलिक संत की उपाधि दी गयी।
क्रिस्टोफ़र हिचन्स (ब्रिटेन में जन्मे, अमेरिकी लेखक, पत्रकार) से मदर टेरेसा (Mother Teresa) को रोमन कैथलिक संत की उपाधि दिए जाने पर जब पूछा गया तो उन्होंने कहा बिना किसी सबूत के जब किसी बात का दवा किया जासकता है तो उसे बिना किसी सबूत के ख़ारिज भी किया जा सकता है।
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