Origin Of Death, Truth Of Previous Birth, Path To Salvation

मृत्यु की उत्त्पत्ति किस प्रकार हुई ? मुक्ति का मार्ग क्या है ? क्या सच है पूर्व जन्म का ?

जब हम संसार में आते हैं उसको जन्म कहा जाता है। ये सभी जानते हैं की हमारेअस्तित्व और इस सृष्टि को ब्रह्मा जी द्वारा रचा गया है बहुत कम लोग जानते की मृत्यु किस तरह अस्तित्व में आई और हमारी मृत्यु क्यों होती है। आइए जानते हैं की मृत्यु की उत्पत्ति किस प्रकार हुई और किसने की। ब्रह्मा जी ने सृष्टि को रचने के कई वर्षो बाद देखा की सृष्टि में प्राणियों के संख्या तो बढ़ती ही जा रही है। ब्रह्मा जी को लगा की पृथ्वी इतना भार नहीं सह पाएगी और इस भार से पृथ्वी अपने मार्ग से भी भटक सकती है। ये देख ब्रह्मा जी चिंतित हो गए कोई हल ना निकलने पर ब्रह्मा जी को क्रोध आ गया। उन्होंने अपने क्रोध से सृष्टि को जलाना प्रारंभ कर दिया। ये देख सभी देवता चिंतित हो गए यह देख देवता ब्रह्मा जी के पास गए और ब्रह्मा जी से ऐसा करने का कारण पूछा पर ब्रह्मा जी ने उन को कुछ भी बताने से मना कर दिया और वहां से जाने को कहा। देवता अत्यधिक चिंतित हो गए और वे भगवान शंकर के पास गए और सारी बात शिव जी को बताई। देवताओं की बात सुन शिव जी ब्रह्मा जी के पास गए और ब्रह्मा जी से इस विनाश की वजह पूछी। तब ब्रह्मा जी ने भगवान शिव को बताया की मेरे द्वारा बनाई गई सृष्टि में जीवो की संख्या बढ़ती ही जा रही है। जनसंख्या की तेजी से वृद्धि के कारण पृथ्वी नष्ट हो जाएगी इस लिए पृथ्वी पर जीवो के संतुलन के लिए मैं जीवो को नष्ट कर रहा हूं। यह सुन भगवान शिव ने कहा आप जिस तरह सृष्टि में जीवो का विनाश कर रहे हैं इस तरह पृथ्वी पर कोई भी जीव नही बचेगा। आप किसी अन्य विधि से जीवो की संख्या को संतुलन में लाएं। 


मृत्यु की उत्पत्ति 

ब्रह्मा जी ने शिव भगवान की बताई गई बात पर विचार किया। ब्रह्मा जी ने भगवान शिव के कहे अनुसार अपने क्रोध की अग्नि से एक स्त्री को उत्पन्न किया। ब्रह्मा जी ने अपनी क्रोधाग्नि से जिस महिला को उत्पन्न किया उसको नाम दिया मृत्यु। मृत्यु का रूप बहुत ही भयानक था मृत्यु की आँखे अंगारो की तरह लाल थीं। मृत्यु की आँखों में देखने की शक्ति का साहस हर किसी को नहीं है। मृत्यु के उत्त्पन होने के बाद मृत्यु ने ब्रह्मा जी से कहा आपने मुझे किस कार्य के लिए उत्पन्न किया है। इस प्रश्न के जवाब में ब्रह्मा जी ने मृत्यु को कहा की तुमको जीवो के प्राण हरने और उनको मृत्यु देने के लिए उत्पन्न किया गया है। इस बात को सुन मृत्यु घबरा गयी मृत्यु ने कहा की मै किसी जिव की हत्त्या के पाप की भागी नहीं बन सकती। मृत्यु ने कहा हे प्रभु आप मुझे किस तरह का कार्य दे रहे हैं इस तरह तो सभी जीव मुझ से ग्रहणा करेंके। तब ब्रह्मा जी ने मृत्यु को समझाया की तुम किसी जीव की मृत्यु का कारण नहीं बनोगी और लोग तुमको अखंड सत्य मान कर पूजेंगे। इन बातो को सुन मृत्यु का मन शांत हुआ और ब्रह्मा जी के दिए हुए कार्य को करने के लिए राजी हो गई। पर मृत्यु को संका थी की जीव की मृत्यु होगी कैसे ये प्रश्न मृत्यु ने ब्रह्मा जी से पूछा। ब्रह्मा जी ने म्रृत्यु को बताया जीव खुद ही अपनी मृत्यु का कारण बनेगा जीवो के कर्म ही उसके प्राण निकने की वजह बनेगे इसमें तुको कोई पाप छुएगा भी नहीं। ब्रह्मा जी ने मृत्यु से कहा जब जीव के प्राण निकलेंगे वंहा तुम्हारा होना अत्यंत आवश्यक होगा। मृत्यु ही जीव के प्राणो को हरने के लिए जीवो की मदद करोगी। तब से अब तक प्राण त्यागते मनुष्य के समीप मृत्यु उपस्थित होती और जीव के प्राणो को निकलने में जीव की मदद करती आ रही है।   


पूर्व जन्म का सत्य 

मनुष्य योनि अर्थात मनुष्य जीवन को सभी योनियों से ऊपर रखा गया है। मनुष्य जीवन प्राप्त होना पूर्व जन्मों का फल है सभी को मनुष्य जीवन नही मिलता कुछ पुण्य कार्य के प्रतिफल ही मानव जीवन प्राप्त होता है। हम इस जीवन चक्र से छूट कर परमात्मा में लीन हो सकते हैं। हमारे कर्म हमारी योनि को सुनिश्चित करते हैं हम जानवरो की योनि में पैदा होंगे, कीड़े मकोड़े की योनि या मनुष्य के अलावा अन्य योनियों में जन्म लेंगे ये हम पर निर्भर करता है। मनुष्य के अच्छे और बुरे कर्म उसके अगले जन्म की योनि तय करते हैं। जब मनुष्य जीवन मिलने के बाद भी इसका उचित उपयोग नहीं करते तब आप बार बार अलग अलग योनियों में जन्म लेते है और मृत्यु को प्राप्त होते हैं। और यह चक्र इसी प्रकार चलता रहता है। 


जन्म मरण से मुक्ति 

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जब तक हम ये नही जान पाते की हम कौन हैं कहां से आए हैं हमारा उद्देस्य क्या है तब तक हम बार बार जन्म लेते है मरते हैं और हमे मुक्ति नही मिलती। मुक्ति को पूर्ण रूप से समझने के लिए आपको इसके बारे जानना होगा। मुक्ति कोई छोटी या आसन प्रक्रिया नही जो कोई भी आसानी से पा ले इसको पाने के लिए आपको भरसक प्रयत्न करने करने होंगे। हम जानते है जिस तरह खेत में किसान अनाज के बीज को बोता है उसको सींचता है फसल को नुकसान पंहुचने वाले कीट पतंगे और उसमे उगने वाली घास से उसकी रक्षा करता है। इसके बाद लगातार महीनो तक देख भाल करने के बाद उसको अनाज रूपी फल मिलता है इस अनाज के रूप में मिलने वाली खुशी वह किसान ही बता सकता है उसको किसान के अलावा और कोई नही बता सकता। 


पूर्व जन्म की स्मृति का सच 

जब मनुष्य जन्म लेता तब कुछ मनुष्य को अपने पिछले जन्म की यादें वर्तमान जन्म में याद रह जाती हैं। जिस मनुष्य को पूर्व जन्म की याद चित्त में रह जाती है वह अपने पूर्व जन्म को प्राथमिकता देता है। पूर्व जन्म में उसकी मां,भान,भाई,पिता और अन्य लोगो की पूरी जानकारी और अपनी मृत्यु का के कारण का ज्ञान भलीभांति होता है। पूर्व जन्म की स्मृति से वह अपने गांव शहर का नाम भी बताता है जो खोजे जाने पर सच प्राप्त होता है।अब विज्ञान भी पूर्व जन्म की घटना को सच मानने लगे हैं। देश विदेश में भी इस तरह की घटनाएं देखने को मिलती रहती हैं और सच साबित होती हैं। जब मनुष्य की मृत्यु होती है इसके बाद मनुष्य की आत्मा तीन चरणों से होकर गुजरती है। इसमें पहले चरण में आत्मा विश्राम करती है दूसरे चरण में आत्मा को अपने कर्मो के अनुसार फल मिलता है। तीसरे और अखरी चरण में मनुष्य पुनः जन्म लेने की प्रक्रिया में लग जाता है। पुनः जन्म लेने के लिए आत्मा स्वतंत्र होती । कुछ मनुष्य जिनका मोह जिस से अधिक होता है वह आत्मा उस स्थान पर जन्म लेती है। कुछ आत्माए अपने ही घर में जन्म लेती हैं कुछ आत्माए अपने घर के आस पास जन्म ले लेती हैं। और इन्ही लोगो को अपने पूर्व जन्म की स्मृतियां बनी रहती हैं। समय बीतने के साथ साथ ये स्मृतियां धुंधली हो जाती हैं।

 

मुक्ति कैसे प्राप्त होगी? 

हमारे वेद और पुराणों के अनुसार मुक्ति वह स्तिथि है जब एक मनुष्य इस आभासी संसार से अपने लोभ,लालसा,लगाव,मोह को त्याग देता है। जब मनुष्य जीवन के उद्देश्य को जान जाता है सच अर्थात परमात्मा को पहचान लेता है तब मनुष्य मुक्ति पाने के लिए अपने कदम बढ़ा सकता है। मुक्ति पाने के लिए एक साधारण मनुष्य को अपने जीवन में कोई ऐसा कार्य नही करना जिससे किसी को हानि पहुंचे। मनुष्य को सांसारिक दुख और सुख से दूर होना पड़ता है मनुष्य को सारे भौतिक और सांसारिक सुखों का त्याग करना होगा जो वास्तविक नही होते। ऐसी किसी लालसा को ह्रदय में नही रखना जो आपको इस काल्पनिक संसार से जोड़ती हो। मनुष्य को सच अर्थात परमात्मा से जुड़ने का प्रयास करना होगा। जब आपका जित्त सभी मोह माया को त्याग देगा और इस संसार से अपना लगाव तोड़ देगा तब एक मनुष्य मुक्ति पाने के योग्य हो जायेगा। 


मुक्ति पाने का अहसास?

एक साधारण इंसान या जो मुक्ति को प्राप्त ना सका हो आपको मुक्ति का पूर्ण अहसास नही करा सकता। हमारे ऋषि मुनि और योगियों ने वेदों और पुराणों में दिए गए नियमो के बल पर मुक्ति को प्राप्त किया है। हमारे वेद पुराण में मुक्ति के मार्ग और मुक्ति के पश्चात प्राप्त होने वाले फल का वर्णन किया गया है। जब मनुष्य मुक्ति पाने के योग्य होता है तब वह जन्म और मृत्यु के चक्र से छूट जाता है मुक्ति मिलने के बाद मनुष्य की आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है। मनुष्य की आत्मा भी परमात्मा का ही अंश है जब आत्मा परमात्मा में समा जाती है तब जो आनंद और शांति की अनुभूति होती है वह इस संसार में नही है। परमात्मा में विलीन होने के बाद मनुष्य की सारी इच्छाएं ,लोभ,लगाव,सुख और दुख सभी का सच मनुष्य को ज्ञात हो जाता है मनुष्य बार बार अनेक योनियों में जन्म इस लिए लेता है कन्योकि उसकी इच्छाएं एक जन्म में पूरी नहीं होती इसी कारण वह जन्म मृत्यु के चक्र में फसा रहता है। मुक्ति मिलने पर दुबारा इस काल्पनिक संसार में जन्म लेने की सारी इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं। परमात्मा से उपन्न हमारी आत्मा उसी परमात्मा में विलीन हो जाती है।

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