सात चिरंजीवी (Chiranjivi) कल्कि Kalki की प्रतीक्षा में
आज हम आपको बताएंगे कि वो सात चिरंजीवी (Chiranjivi) कल्कि अवतार से कब और कहाँ मिलेंगे? जब जब इस धरती पर पाप बढ़ा है तब तब भगवान विष्णु ने अवतार लिया है और दुष्टों का नाश किया है। भगवान विष्णु के अब तक कुल नौ अवतारों का अवतरण इस धरती पर हो चुका है। हिंदू पुराण और धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु का दसवां अवतार कल्कि (Kalki) अवतार के रूप में कलयुग में जन्म लेगा। वहीं कलयुग में कल्कि (Kalki) अवतार की प्रतीक्षा में आज भी सात महापुरुष जी रहे हैं।
सप्त चिरंजीवी निम्नलिखित हैं
- हनुमान
- परशुराम
- राजा बली
- विभीषण
- अश्वत्थामा
- महर्षि व्यास
- कृपाचार्य
चिरंजीवी (Chiranjivi) राम भक्त हनुमान
बजरंगबली इन दिव्य पुरुषों की सूची में सबसे पहले चिरंजीवी (Chiranjivi) महापुरुष राम भक्त हनुमान जी का नाम आता है। हनुमान जी को माता सीता ने चिरंजीवी (Chiranjivi) होने का वरदान दिया था और भगवान श्रीराम से बजरंग बली को कलयुग के अंत तक धर्म और रामकथा का प्रचार करने की आज्ञा मिली थी।
हनुमान जी के जीवित होने के प्रमाण आज भी कई जगहों पर मिलते हैं। महाभारत के वनपर्व अध्याय की 151 के अनुसार, एक बार भीम द्रौपदी के लिए पुष्प लेने गंधमादन पर्वत जा रहे थे तब उनकी मुलाकात हनुमान जी से हुई थी। कहा यह भी जाता है कि हर 41 साल में बजरंग बली श्रीलंका के मातंग कबीले में ब्रह्मज्ञान देने आते हैं।
कलयुग के अंत में जब पाप की सीमा बढ़ जाएगी तब भगवान कल की इस पृथ्वी लोक पर अवतरित होंगे तब बजरंगबली एक बार फिर से भगवान कल्कि (Kalki) के रूप में श्री राम जी के दर्शन करेंगे और तब श्रीराम द्वारा दिए उन वचनों का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा।
चिरंजीवी (Chiranjivi) परशुराम
परशुराम चिरंजीवी (Chiranjivi) महापुरुषों की लिस्ट में दूसरा नाम परशुराम जी का आता है। परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। चिरंजीवी (Chiranajivi) होने के चलते उनके भी प्रमाण महाभारत काल में भी दिखे थे। आपको बता दें कि परशुराम जी पितामह भीष्म, कर्ण और गुरु द्रोणाचार्य के गुरु भी थे।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान कल्कि के गुरु भी परशुरामजी ही होंगे। महाभारत काल में भी उनका निवास महेंद्रगिरि पर्वत ही था और आज कलयुग में भी वह इसी पर्वत पर तपस्या में लीन होकर कल्कि अवतार की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
चिरंजीवी (Chiranjivi) राजा बली
अगले चिरंजीवी (Chiranjivi) हैं राजा बली राजा बली श्री हरि भक्त प्रहलाद के वंशज थे। उन्होंने अपने बल से तीनों लोगों को जीत लिया था। इसके साथ ही उनको बहुत बड़ा दानवीर भी माना जाता है। पौराणिक कथाओं की मानें तो भगवान विष्णु ने राजा बलि के घमंड को तोड़ने के लिए वामन अवतार लिया था। एक बार श्री हरी राजा बली के यज्ञ में शामिल हुए। यज्ञ के दौरान ही सभी ब्राह्मण अपने लिए राजा बली से कुछ ना कुछ दान मांग रहे थे जो राजा बलि उन्हें दे भी रहे थे।
तब वामन देवता की बारी आई तो उन्होंने सिर्फ तीन पग भूमि राजा बली से मांग ली। तब राजा बली और उपस्थित सभी ब्राह्मण हंस पड़े। राजा बली ने कहा कि आप अपने छोटे छोटे पैरों से कितनी जमीन ना पाएंगे और कुछ मांग लो। लेकिन वामन देवता अपनी मांग पर डटे रहे। तब राजा बली ने कहा जहाँ आप चाहो तीन पग जमीन ले लो।
तब वामन देवता ने अपना विराट रूप धारण कर लिया और एक पग में देवलोक और दूसरे पग में पृथ्वी और पाताल लोक नाप दिया। इसके बाद उन्होंने कहा कि तीसरा पग कहा रखूं? राजन
राजा बलि ने अपना सर आगे कर दिया और वामन देवता ने राजा बलि के सिर पर पैर रखकर उन्हें पाता लोग भेज दिया और उन्हें सुतललोक में बसा दिया जहाँ वो आदमी अपनी मुक्ति के लिए कल्कि (Kalki) अवतार की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
चिरंजीवी (Chiranjivi) विभीषण
चौथे चिरंजीवी (Chiranjivi) विभीषण प्रभु राम के अनन्य भक्त थे। जब लंकापति रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था तब भी भीषण ने अपने भाई रावण को काफी समझाया था कि भगवान राम से शत्रुता ना करे। इसके बाद रावण ने उन्हें अपनी लंका से निकाल दिया था।
तब विभीषण भगवान राम की सेवा में चले गए और रावण के अधर्म का अंत करने के लिए धर्म का साथ दिया। यही कारण है कि भगवान श्रीराम ने बिभीषण को चिरंजीवी होने का वरदान दिया था, जो कि आज के युग यानी कलियुग के अंत तक जीवित रहेंगे। विभीषण के जीवित होने के प्रमाण रामायण काल के बाद महाभारत काल में भी मिले थे।
युधिष्ठिर के राजसी यज्ञ के दौरान सहदेव विभीषण की मुलाकात हुई थी। कलयुग में विभीषण कहा है, इस बात की जानकारी तो किसी को नहीं है। लेकिन ये जरूर पता है कि उनका उस युग में भी होने का सिर्फ एक लक्ष्य है जो है अपने प्रभु के अवतार कल्कि (Kalki) से मिलना।
चिरंजीवी (Chiranjivi) अश्वत्थामा
इन सात महापुरुषों में अश्वत्थामा का नाम भी शामिल है। गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा आज भी इस पृथ्वी लोक पर मुक्ति के लिए भटक रहे हैं। महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था। धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्मास्त्र चलाने के कारण अश्वत्थामा को कलियुग के अंत तक भटकने का श्राप दिया था। अश्वत्थामा के संबंध में प्रचलित मान्यता है।
कि मध्यप्रदेश के असीरगढ़ किले में मौजूद प्राचीन शिव मंदिर में चिरंजीवी (Chiranjivi) अश्वथामा हर दिन भगवान शिव की पूजा करने आते हैं। अश्वथामा भी कल्कि अवतार की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कहा जाता है कि अश्वत्थामा भगवान शिव का इकलौता ऐसा अवतार है जिसकी पूजा नहीं की जाती। परन्तु कल्कि (Kalki) अवतार में अश्वत्थामा का एक अहम रोल होगा, जो आने वाली पीढ़ियों तक उसका गुणगान करेंगी।
चिरंजीवी (Chiranjivi) महर्षि व्यास
महर्षि व्यास अश्वत्थामा के बाद छठे चिरंजीवी (Chiranjivi) महापुरुष हैं। महर्षि व्यास महर्षि को वेदव्यास के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने ही चारों वेद महाभारत, 18 पुराण और भागवत गीता लिखी थी। महर्षि व्यास जी ने भगवान कल्कि (Kalki) के जन्म से पहले उनके अवतार के बारे में ग्रंथों में लिख दिया था। महर्षि वेदव्यास बहुत बड़े तपस्वी होने के कारण आज भी कलयुग में भगवान कल्कि (Kalki) के दर्शन के लिए तपस्या में लीन होकर इंतजार कर रहे हैं।
चिरंजीवी (Chiranjivi) कृपाचार्य
कृपाचार्य कलयुग के चिरंजीवी (Chiranjivi) महापुरुष हैं, कृपाचार्य संस्कृत ग्रंथों में उनको चिरंजीवी के रूप में बताया गया है। कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और पांडवों और कौरवों के आचार्य थे भागवत के मुताबिक कृपाचार्य की गणना सप्तऋषियों में की जाती है।
कहा जाता है कि वे इतने बड़े तपस्वी थे कि उन्हें अपने तप के बल पर चिरंजीवी रहने का वरदान मिला था। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि उनकी निष्पक्षता के आधार पर उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान मिला था। कलयुग में कृपाचार्य अधर्म का नाश करने में कल्कि (Kalki) अवतार की मदद करेंगे।
अब आपको पता चल गया होगा कि सात चिरंजीवी (Chiranjivi) कलयुग में भगवान विष्णु के अवतार कल्कि से कब और कहाँ मिलेंगे? इस पोस्ट के जरिए आपको कई सवालों के जवाब मिल गए होंगे।
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