Hamare Desh Ka Durbhagya Desh Me Accha Margdarshak Nahi

हमारे देश का दुर्भाग्य

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हमारा देश को चलाने वाली सरकारो के पास ऐसा नेता नही जो इस देश को सही राह पर तेजी से ले जा सके।।मेरा कहना ये नही की ये देश को आगे नहीं ले जा रहे पर इनके कार्य करने का ढंग अधिक निष्पक्ष और गतिशील भी हो सकता है। हमारा देश जिसको लोकतंत्र कुर्सी पर बिठाता है उसके विचार और उद्देश्य अचानक बदल जाते हैं। हम जिस वजह से उनको शासन की कमान थमाते हैं उस मुद्दे को भुला दिया जाता है। लिकिन इस कुर्सी पर बैठने के बाद नेता सर उठा कर कहते हैं हमारा देश प्रगति की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है पर ऐसी कोई बात आपको दिखाई नहीं पड़ेगी। सरकार की कमियां बताने वाली आवाजों को दबा दिया जाता है। जिसकी सरकार सत्ता में होती है सारे न्यूज चैनल अखबार सरकार की उंगलियों पर नाचते हैं। वैसे तो न्यूज मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। आज यही चौथा स्तंभ सबसे ज़्यादा दुर्भावनाएं और देश में कलह फैलाते हैं। ये लोकतंत्र के चौथे स्तंभ नही रह गए जैसे एक वैश्या अपना शरीर पैसे के लिए बेचती है  ये टीआरपी के लिए अपनी जवाा बेचते हैं। हमारे देश के राजनेता वैसी हमारी न्यूज मीडिया। 

हमारे देश में लोग किसी उत्सव में एकत्रित हों तो सरकार कहती है भीड़ से Corona फैलेगा। और आम आदमी सरकार की बात मान कर कई चीजों पर रोक लगा लेते हैं। पर पैसा बांटकर इलेक्शन की रैली के लिए लाखो लोग इकट्ठे किए जाते हैं तब उस भीड़ को Corona नहीं होगा।ऐसे कई उदहारण आपको मिलेंगे जब महामारी की खतरनाक स्तिथी में सरकार के नेताओ ने लाखो लोगो को इकट्ठा किया और social distancing का पालन नहीं किया मास्क की भी जरूरत नहीं महसूस हुई इन नेताओ को। Corona महामारी को भी हतियार बना कर राजनीति की हत्या की गई Corona से हुई मृत्यु के शव गायब कर दिए गए ऐसी खबरे भी आईं। कुछ अस्पतालों ने तो इलाज के नाम पर लाखो रुपए लिए और मरने के बाद शव को उन्ही के परिजनों को हजारों में बेंच दिया गया। और इसके पीछे महामारी का हवाला दिया गया और इनकी शिकायत करने पर कोई इनकी सुनने को त्यार नही हुआ किसी की किडनी बेची गई कैसी का कुछ ये भी कहते हुए लोग पाए गए।

क्यों किसी राजनेता का बेटा फौज में नहीं?

ये एक बहुत बड़ा सच है आपको किसी नेता का बेटा किसी भी सेना में नहीं मिलेगा। इनको पता है इनके बेटे ऐसी मेहनत नहीं कर पाएंगे जो एक सच्चा लाल देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर करता है। ये भी हमारे देश के लिए अच्छा है की नेताओ के बच्चे सेना में नहीं अगर होते तो हमारी सेना भी राजनीति की भेंट चढ़ती वहां भी भ्रष्टाचार अपनी पकड़ बना लेता। हमारे देश के नेताओ के बेटो को तो बड़ा व्यापारी,फैक्ट्रियों का मालिक बने हुए ही देखेंगे। और कुछ परिवारों में तो राजनीति ही पीढ़ी दर पीढ़ी चलती मिल जायेगी। क्यों हमारे देश के अधिकांश नेताओ के बच्चे विदेशो में पढ़ते हैं क्या भारत में पढ़ने लायक विद्यालय नही और अगर नही तो इसका जिम्मेदार कौन है? इनके बच्चो के बारे में आपको तब सुनने को मिलेगा जब वो कोई कानून तोड़ते पकड़े जाएंगे या अपने बाप के कैश पर ऐश कर रहे होंगे। कुछ घंटों बाद पुलिस इनको छोड़ भी देती है।

धर्म के नाम पर देश को बांटने वाली राजनीतिक पार्टियां

धर्म तो नेताओ को राजनीति के लिए बहुत आसान और असरदार मुद्दा बन गया है। अगर धर्म के नाम पर कोई लड़ने को तैयार नहीं होता तो कहा जाता है की ये तो धर्म नही मानता मजबूरी में उसे किसी एक को चुनना पड़ता है और ना चाहते हुए भी वो इस षड्यंत्र का हिस्सा बन जाता है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में सब भाई भाई ये तो छोटे बच्चो के लिए एक कविता मात्र है जो ये भी नहीं जानते की धर्म क्या है। हमारे देश में ऐसे बहुत से राज्य मिल जाएंगे जहां चुनाव का मुद्दा सिर्फ दो धर्म विशेष पर ही होता है। धर्म का इस्तेमाल राजनीति में करके देश में तरह तरह के दंगे हुए हजारों लाखों लोग इन राजनीतिक धर्म दंगो की भेट चढ़ गए। चाहे वो बाबरी मस्जिद हो या गुजरात के दंगे। लाखो लोग बेघर हुए किसी के सर से मां बाप का साया उठा तो किसी ने अपना जवान बेटा खोया इसमें बलात्कार भी शामिल होता है पर इसको दबा दिया जाता है।

क्या नेता बनने के लिए एक निश्चित योगिता होनी चाहिए?

ये प्रश्न आम जनता वर्षो से उठती आई है की कैसे 10 वीं या 12वीं पास व्यक्ति नेता बन सकता है। जिन नेताओं के कंधो पर हम देश की जिम्मेदारी सौंपते हैं उनकी एक न्यूनतम शिक्षा स्तर घोषित की जाने चाइए। हमारा सर शर्म से झुकता है  जब एक पढ़ा लिखा IPS अधिकारी या IAS अधिकारी एक अनपढ़ मंत्री या नेता के जूते साफ करता देखा जाता है।इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं की ये कम पढ़े लिखे नेता किस तरह अपनी शक्ति का इस्तेमाल गलत तरीके से करते आए हैं। हमारे देश में जब ऊंचे मंचो से भाषण दिए जाते हैं तो कहा जाता है की हम बच्चो को शिक्षा देंगे जिससे वो पढ़ लिख कर बड़े आदमी बने पर कोन मां बाप नही चाहता अपने बच्चो को पढ़ना क्या इनके कहने से कोई अपने बच्चो को पढ़ता है। इन कम पढ़े लिखे या पैसे से खरीदी गई डिग्रियों के बल पर इनको अक्ल आयेगी या कोई ज्ञान प्राप्त होगा। तो क्यों कोई सरकार एक ऐसा नियम नहीं लाती जिसमे राजनीति में आने से पहले एक न्यूनतम योग्यता का विकल्प रखा जाए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो हमारे देश की कमान इसी तरह अनपढ़ नेताओ के हाथ में रहेगी और देश को ये अपनी मूर्खता से चलाएंगे जिसका असर आम जनता को भुगतना पड़ेगा। सभी नेता अनपढ़ या कम पढ़े लिखे नहीं पर पर इतने तो हैं जो देश को बर्बाद करने के लिए काफी हैं। 

संविधान को जलाना चाहते थे संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर

हमारा सविधान दुनिया का सबसे अधिक शब्दों वाला संविधान है इसको २६ जनवरी १९४९ को पेश किया गया और २६ जनवरी १९५० को लागु कर दिया गया। हमारे संविधान में ऐसी कई धाराएँ हैं जो अंग्रेजो द्वारा बनायीं गयी थी। हमारे सविधान की धरा 74(1) में अनुसार राष्ट्रपति को फैसला लेने या उनकी सहायता के  लिए एक मंत्रीपरिषद होगा इसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा। राष्ट्रपति सलाह के अनुसार ही फैसला लेंगे अर्थात सारी शक्तियां मंत्री परिषद् की होंगी और इसका प्रमुख प्रधान मंत्री होगा। धरा 74(1) के अनुसार अगर देखा जाये तो राष्ट्रपति जी मंत्रिपरिषद के कठपुतली मात्र होंगे उनका अपना कोई निर्णय नहीं होगा।भीमराव अंबेडकर कुछ मतभेद के कारण सविधान को जलाना चाहते थे। इस पर बहुत से लेख लिखे गए बीबीसी को दिए गए इंटरव्यू में भीमराव अंबेडकर ने इसका खुलासा किया था। जब संविधान बनाने वाली समिति का प्रमुख उसको जलाना चाहता था तो आप समझ सकते हैं इसमें जरूर कुछ कमिया होंगी। 

लोकतंत्र के होते हुए भी देश में होती है तानाशाही 

हमरा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इसके कशीदे गढ़े जाते हैं। पर सच्चाई ये है की तानाशाही भी साथ साथ होती है जिसको संविधान के किसी नियम से जोड़ दिया जाता है। तानाशाही का रूप बदल दिया गया है हमारे देश में एक तनाशा नहीं बल्कि जगह गजह तनाशाह  बैठे हैं। जिनको कुर्शी मिलती है वो अपनी तानाशाही करता है।  

एक राज्य बने दूसरे राज्य के दुश्मन 

हमारे देश में राज्य सरकार आपस में इस तरह लड़ती हैं जैसे ये हिंदुस्तान के राज्य नहीं बल्कि इनके खुद के साम्राज्य हैं। इस लड़ाई में पीसा जाता है आम आदमी अगर दो राज्यों की सरकारे अलग अलग राजनितिक पार्टियों की हो तो ये एक दूसरे के दुश्मन बने रहते हैं। इसके उदाहरण आपको देखने को रोज मिल जायेंगे।

अगर देश के लोग इसी तरह इनके अत्याचार सहते रहेंगे तो ये इस्तिथी सामान्य नही होगी। हमको खुद पर दूसरो पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। जिस देश को महान देशभक्तो ने अंग्रेजो से आजाद कराया और हमने आजाद भारत में सांस ली। हमे किसी की गुलामी नही करनी अपने अधिकारों को जाने और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाएं।

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