चक्रवर्ती सम्राट अशोक (Samrat Ashok) का एक ऐसा चरित्र
चक्रवर्ती सम्राट अशोक (Samrat Ashok) भारतवर्ष का एक ऐसा चरित्र जिसकी तुलना किसी अन्य राजा या शासक से नहीं की जा सकती। सम्राट अशोक को एक विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली सम्राट के रूप में जाना जाता है। सम्राट अशोक (Samrat Ashok) मौर्य राजवंश के तीसरे शासक के रूप में भी जाना जाता है।
चक्रवर्ती सम्राट अशोक (Samrat Ashok) को कई नमो से जाना जता है जैसे देवानांप्रिय अशोक, प्रियदर्शी अशोक। “देवानांप्रिय” का अर्थ होता है देवताओं की तरह प्रिय और अशोक का अर्थ होता है दुःख से रहित। अशोक को अशोक बिन्दुसार मौर्य के नाम से भी जाना जाता था।
महान सम्राट अशोक का जीवन
महान सम्राट अशोक का जन्म 304 ईसा पूर्व बिहार के पटना के निकट एक छोटे से गांव पटलिपुत्र में हुआ था। यह स्थान वर्तमान में पटना शहर के नाम से जाना जाता है। सम्राट अशोक की मृत्यु 232 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र, पटना में हुई।
अशोक के पिता का नाम राजा बिन्दुसार और माता का नाम नाम सुभद्रांगी था। अशोक की माँ ब्राह्मण की पुत्री थी उनको ‘धर्मा’ नाम से भी जाना जाता था। सम्राट अशोक के दादा मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य थे। सम्राट अशोक की 4 रानी थी उनके नाम देवी, कारुवाकी,पद्मावती और तिष्यरक्षिता थे।
सम्राट अशोक जिंदा दिल योद्धा
शोक बचपन से ही युद्ध कला में माहिर थे इसलिए बचपन से ही शाही युद्ध कला का प्रशिक्छण दिया जाने लगा था। उनकी शक्ति और निडरता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है की छोटी आयु में हो अशोक ने लकड़ी की छड़ी से शेर का शिकार कर दिया था।
एक जिंदा दिल योद्धा और शिकारी होने की वजह से पिता बिन्दुसार ने अशोक को शांति स्थापित करने अवन्ति भेजा । अवन्ति में उस समय जगह जगह दंगे हो रहे अशोक ने बड़ी ही कुशलता से अवन्ति में हो रहे दंगो को शांत करा दिया। इस विजय से अशोक ने पिता की नजरो में एक विशेष स्थान प्राप्त किया।
सम्राट अशोक का शासन
अशोक का शासन लगभग 268 ईसा पूर्व से लेकर 232 ईसा पूर्व तक चला। अशोक ने भारत के मौर्य वंश का साम्राज्य का विस्तार अफनिस्तान में हिन्दुकुश तक किया था। उस समय मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र और उप राजधानियाँ तक्षशिला और उज्जैन। अशोक ने कुशल शासन करते हुए मात्र तीन वर्ष में ही अपने साम्राज्य में हर जगह सम्पूर्ण शांति स्थापित कर दी थी।
अशोक के शाशन काल में विज्ञान, तकनीक और चिकित्शा में बड़ी तरक्की की। अशोक के शाशन के प्रभाव से भारत की प्रजा ईमानदारी और सच्चाई के रास्ते पर चलने लगी। देश में चोरी लूटपाट की घटनाये लगभग बंद हो गयी प्रजा के आय के साधनो में बड़ी तीव्र वृद्धि हुयी। सम्राट अशोक हमेशा देश की प्रजा की भलाई के लिए रात दिन कार्य किया करते थे , वे नहीं चाहते थे की उनके राज में प्रजा दुखी रहे। यही कारण था की मौर्य वंश की प्रजा की नजरो में अशोक ने एक विशेष स्थान प्राप्त कर लिया था।
सर्व धर्म समभाव
अशोक सर्व धर्म समभाव के मार्ग पर चलते थे वे सभी धर्मों को समान सम्मान प्रदान करते थे। अशोक स्वम एक धार्मिक व्यक्ति थे इसका अनुमान इस बात से लगता है की वे 1000 ब्राह्मणो को खाना खिलाने के बाद ही भोजन करते थे।
अशोक एक बहुत बड़े साम्राज्य को बड़ी सरलता और सफलता से चलाते थे। इतने बड़े साम्राज्य में कंही भी कोई भी छोटी घटना होते ही उनको इसका पता चल जाता था, और तुरंत ही उसका समाधान भी कर दिया जाता था।
मौर्य साम्राज्य में शासन व्यवस्था
अशोक ने अपने इतने बड़े मौर्य साम्राज्य में व्यवस्था बनाये रखने के लिए गुप्त चरो (जासूसों) के एक विशाल समूह को स्थापित किया। इन गुप्तचरों को पुरे साम्राज्य में फैला दिया गया था।
इनका काम यह था की सारे साम्राज्य में घट रही छोटी से लेकर बड़ी घटनाओ को सम्राट अशोक तक जल्द से जल्द पहुंचना। सम्राट अशोक ने सर्व प्रथम पुलिस व्यवस्था को देश में लागू किया। मौर्य साम्राज्य में व्यवस्था बनाये रखने के लिए देश में छोटे छोटे छेत्रो में कुछ विशेष अधिकारिओ को नियुक्त किया।
कलिंग युद्ध के कारण
आज का उड़ीसा उस समय कलिंग नाम से जाना जाता था। कलिंग का युद्ध कलिंग के राजा अनंत पद्मनाभन और सम्राट अशोक के बीच 261 ईo पूo लड़ा गया था।
कलिंग पर आक्रमण का पहला कारण अशोक का अपने साम्राज्य का विस्तार करना, दूसरा अपने दादा चन्द्रगुप्त मौर्य की हार का बदला लेना भी था। अपने समय में चन्द्रगुप्त मौर्य कलिंग से युद्ध हारे थे जिसमे मौर्य वंश के जान माल का बहुत बड़ा नुक्सान हुआ था।
कलिंग समुद्र के तट पर बसा था जो व्यापार की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण छेत्र था। कलिंग को जीत कर दक्षिण पूर्व के देशो से व्यापारिक रिस्तो के साथ आर्थिक लाभ को बढ़ाया जा सकता था।
कलिंग युद्ध के परिणाम
कलिंग का युद्ध सम्राट अशोक के जीवन में बहुत बड़े परिवर्तन का कारण बना। इस युद्ध में लगभग 1 लाख जाने गयीं थी और 2 लाख लोग घायल हुए थे, जिसमे बच्चे और औरते भी शामिल थी। कलिंग का युद्ध सम्राट अशोक ने जीता पर जब वह इस युद्ध के परिणाम को देखने गया तब वह इसके परिमाण को देख दहल गया।
इंसानो के खून से मैदान के गड्ढे भर गए थे क्षत-विक्षत शवो के ढेर लगे हुए थे। अशोक ने किसी भी युद्ध में इतना भीषण नरसंहार नहीं देखा था। यही अशोक के जीवन में बहुत बड़े परिवर्तन का कारण बना। अशोक ने सम्पूर्ण जीवन के लिए शस्त्र त्याग दिए और बुद्ध धर्म के मार्ग को चुना।
कलिंग युद्ध की विस्तृत जानकारी ने हांथी गुफा अभिलेख पर मिलती है जो आज ओडिशा में स्थित है। हांथी गुफा अभिलेख को ओडिशा के राजा खारबेल ने बनवाया था।
सम्राट अशोक का पश्चाताप
कलिंग के युद्ध के पश्चात सम्राट अशोक ने जीवन भर शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ली। कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने शांति मार्ग अपनाया जिसमे बौद्ध धर्म ने उनका सहयोग किया। अशोक को बौद्ध धर्म की प्रेरणा निग्रोथ से मिली और बौद्ध धर्म की दीक्षा उपगुप्त से प्राप्त की।
बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद भी अशोक सभी धर्मो में आस्था रखते थे। अशोक ने कहा मैने बौद्ध को अपनाया है पर मेरी जनता अपने धर्मो को माने के लिए स्वतन्त्र है, उन्होंने किसी को बौद्ध धर्म अपनाने का दवाब कभी नहीं बनाया।
अशोक और बौद्ध धर्म की धम्म निति
अशोक ने बौद्ध धर्म की धम्म निति को अपनाया और धम्म निति (धर्म की निति पर चलना) सिखाया। सम्राट अशोक ने भारत के पाटलिपुत्र में बौद्ध धर्म की तीसरी बौद्ध धर्म संगति की। अशोक ने अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को बौद्ध धर्म के ज्ञान प्रचार के लिए श्रीलंका बेजा था।
बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर श्रीलंका के शिंघली वश के शासको ने बौद्ध धर्म को अपनाया। वर्तमान में श्रीलंका में अधिकांश लोग बौद्ध धर्म को ही मानते हैं जिसका कारण भी सम्राट अशोक ही हैं।
पूरे विश्व में बौद्ध धर्म के ज्ञान को पहुँचाने वाले भी सम्राट अशोक ही हैं। सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद पूरे विश्व में शांति चाहते थे इसलिए उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया।
सम्राट अशोक के शिलालेख
अशोक को ईरान के हकमनी शासक डेरियस से अभिलेख लिखवाने की प्रेरणा मिली। भारत में अभिलेख लिखने की शुरुआत अशोक ने ही की थी। अशोक ने अपने शासन में भारत के साथ साथ अन्य देशो में कई स्थानों पर अभिलिख (शिलालेख) लिखवाये। ये अभीलेख कई भाषाओ में लिखवाये गए
- भारत में शिलालेख ब्राह्मी लिपि में लिखवाये
- पकिस्तान में अशोक ने शिलालेख को खरोष्ठी लिपि में लिखवाया
- अफगानिस्तान में अशोक ने शिलालेख अरमाइड लिपि में लिखवाये
- ग्रीक में शिलालिश ग्रीक भाषा में लिखवाये गए
सम्राट अशोक के शिलालेख ग्रीक में भी मिले वर्तमान में ग्रीक को तुर्की कहा जाता है। वर्तमान के तुर्की को अशोक के शासन काल में माइनर एशिआ कहा जाता था। इन सभी अभिलेखों में बौद्ध धर्म के उपदेश के साथ साथ अपने अधिकारिओ के सन्देश भी लिखवाये।
इसमें अशोक ने अपने शासको को और सेना को आदेश दिया था की ब्राह्मणो को सताया न जाए। इन आदेशो से पता चलता है की अशोक सभी धर्मो को एक ही नजरिये से देखते थे।
स्तम्भ और स्तूपों का निर्माण
अशोक ने शिला लेख के आलावा बहुत से स्तम्भ और स्तूपों का निर्माण कराया। भारत का राष्ट्रीय चिन्ह अशोक चक्र और शेर की त्रिमूर्ति (अशोक की लाट) भी सम्राट अशोक ने भारत देश को दी। वर्तमान में अशोक का अशोक चक्र हमारे राष्ट्रीय ध्वज की बीच में विधमान है इस अशोक चक्र को धर्म चक्र भी कहा जाता है।
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