श्रीमद भगवद गीता और श्री कृष्ण के उपदेश

श्रीमद भगवद गीता  

श्रीमद भगवद गीता के पास आपके हर प्रश्न का उत्तर है चाहे आपकी कोई भी परेशानी हो कोई भी इच्छा हो श्रीमद् भागवत गीता आपके हर प्रश्न का उत्तर देती है आपकी हर समस्या का हल देती है आज हम इस श्रीमद् भागवत गीता के ऐसे कुछ ख़ास अनमोल उद्देश्य आपको बताएंगे जो आपकी पूरी जिंदगी बदल देंगे

श्रीमद भगवद गीता के महत्वपूर्ण उपदेश

श्रीमद भगवद गीता का उपदेश यह है की कोई अगर आपका अपना है या कोई आपसे बड़ा है तो उसका अपने प्रति गलत व्यवहार कभी भी सहन नहीं करना चाहिए। ये गीता का उपदेश हमारी जिंदगी से भी जुड़ा है। हम भी अपने मां की अधिकतर तकलीफों को ये सोचकर जिंदगी भर सुनते रहते हैं। की ये तो मेरा अपना है ये तो मेरा बड़ा है इसको हम कैसे कुछ कह सकते हैं हम अगर नहीं सहेंगे कुछ कह देंगे तो हमारे रिश्ते ही खराब हो जाएंगे हमारे रिश्ते ही समाप्त हो जाएंगे। 

गलत व्यवहार कभी भी सहन नहीं करना चाहिए।

श्रीमद भगवद गीता का उपदेश यह है की कोई अगर आपका अपना है या कोई आपसे बड़ा है तो उसका अपने प्रति गलत व्यवहार कभी भी सहन नहीं करना चाहिए। ये गीता का उपदेश हमारी जिंदगी से भी जुड़ा है। हम भी अपने मां की अधिकतर तकलीफों को ये सोचकर जिंदगी भर सुनते रहते हैं। की ये तो मेरा अपना है ये तो मेरा बड़ा है इसको हम कैसे कुछ कह सकते हैं हम अगर नहीं सहेंगे कुछ कह देंगे तो हमारे रिश्ते ही खराब हो जाएंगे हमारे रिश्ते ही समाप्त हो जाएंगे।

पर सोचने की बात यह है की उस व्यक्ति को आप अपना कैसे समझ सकते हैं जो आपकी तकलीफों की वजह हो। अपना तो वो होता है जो हमारी तकलीफों को दूर कर दे। तो गीता का यह उपदेश है की किसी को भी अपना फायदा मत उठाने दो।

अर्जुन ने श्रीकृष्ण के आगे अपना दुख प्रकट किया है। की हे केशव में कौरवों से कैसे युद्ध कर सकता हूं ये सब तो मेरे अपने ही हैं। मैं कैसे भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य से युद्ध करूंगा क्योंकि वो दोनों मेरे पूजनीय हैं। इसलिए इन गुरु जनों को मारने से तो अच्छा है मैं भिक्षा के अन्न को खाकर अपने जीवन का गुजर करूं। और जिन कौरवों से मैं युद्ध करने जा रहा हूं वो सब धृतराष्ट्र के पुत्र मेरे भाई ही हैं। मेरे अपने ही हैं इन सबको मारने से अच्छा है की मैं सन्यासी बन जाऊं।

इस पर श्री कृष्णा ने अर्जुन से कहा की यहां कौन अपना है और कौन पराया है जो अधर्म करता है। इस पर उसके साथ युद्ध करना तुझे मोक्ष और मुक्ति देगा तू अपने इस मन के मोह को त्याग दे नहीं तो सारा जग तेरी निंदा ही करेगा। तुझे डरपोक कहेगा बात अपने पराई की नहीं है बात धर्म और अधर्म की है। अगर तू गलत को सहेगा उसका अंत नहीं करेगा तो गलत करने वाले को और बल मिलेगा वो और भी गलत करेगा इसीलिए मन के मोह को त्याग करके तू युद्ध कर।

महाभारत की एक और कहानी भी है जब अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की युद्ध में मृत्यु हो जाति है तब अर्जुन बहुत दुखी होता है वो श्री कृष्णा से कहने लगा की मेरा पुत्र अभिमन्यु मारा गया है मैं ये दुख बिल्कुल भी सहन नहीं कर सकता मैं भी अपने आप को समाप्त कर लूंगा फिर भगवान श्री कृष्णा उसे आत्माओं के लोक में लेकर गए

अभिमन्यु आनंद से बैठा हुआ था क्योंकि उसने क्षत्रिय व्यवहार किया इसलिए उसे उत्तम पद की प्राप्ती हुई जब अर्जुन अभिमन्यु के पास रोते-रोते पहुंचा और अपने पुत्र को देखकर अर्जुन बहुत प्रसन्न हुआ उसे गले से लगाकर कहने लगा की हे पुत्र तेरे बिना तो मैं जी ही नहीं सकता मैंने तो अपने जीवन की आशा को ही त्याग दिया है

अभिमन्यु कहने लगा की आप कौन हैं अर्जुन बोला मैं तेरा पिता हूं तू मेरा पुत्र है अभिमन्यु कहने लगा की कौन पिता कौन पुत्र मेरे हजारों जन्म हुए हैं इस जन्म में आप मेरे पिता बनते हैं और किसी अन्य जन्म मैं आपका पिता बनता हूं। आत्मा का ना तो कोई माता होता है ना कोई पिता होता है

जब अर्जुन ने देखा की मेरा पुत्र मुझे पहचान भी नहीं रहा तो उसका सारा मोह खत्म हो गया। इसलिए गीता के इस उपदेश को ठीक से समझ लो की यहां कोई अपना पराया नहीं है। जो बुरे वक्त में तकलीफ के वक्त में हमारा साथ दें सिर्फ वही हमारा अपना है बाकी सब पराये हैं। 

जो चला गया है कभी उसका दुख मत करो

गीता का एक अन्य महत्वपूर्ण उपदेश यह है की जो चला गया है कभी उसका दुख मत करो और जो आने वाला है उसकी बिल्कुल भी चिंता मत करो जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तब अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा की अगर यह युद्ध हुआ तो करोड़ लोग मारे जाएंगे जो सैनिक और योद्धा इस युद्ध में मारे जाएंगे उनकी स्त्रियों का क्या होगा समाज कैसे आगे बढ़ेगा और भी बहुत सी बातें अर्जुन ने विस्तार से कहीं।

तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा अर्जुन तू बड़ी-बड़ी ज्ञानियों जैसी बातें करता है लेकिन जो सच में ज्ञानी होता है जो लोग मर चुके हैं जा चुके हैं या एक दिन जान वाले है उनकी चिंता नहीं करता है उनका दुख नहीं करता है तेरे हाथ में कुछ भी नहीं है तो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता। जीवन और मरण ये तो प्रकृति की नियति है इसीलिए जो ज्ञानी होता है वो किसी के मरने पर रोता नहीं है। और ना ही आने वाले कल की चिंता करता है

इसीलिए जो होने वाला है वो होकर ही रहता है और जो नहीं होने वाला है वो कभी नहीं होगा ऐसा। जिसको समझ में आ जाता है उसे कभी कोई चिंता नहीं सताती कोई दुख नहीं होता हमारे सारे दुखों का कारण ही यही है। या तो हम जो वक्त गुर्जर चुका है उसे सोच-सोच कर परेशान होते रहते हैं या भविष्य की चिंता कर कर के खुद को बीमार कर देते हैं नष्ट कर देते हैं।

गीता का ज्ञान हमें यही सीखना है की ना तो हम बीता हुआ कल बदल सकते हैं और ना ही आने वाले कल। हमारे हाथ में सिर्फ वर्तमान है सिर्फ आज का ही पल है हमारा 98% तनाव और चिंताएं भूतकाल और भविष्य काल के बारे में सोचते रहने से होता है। हम हमेशा इस में ही जीते रहते हैं मगर वर्तमान में कभी नहीं जीते। जब आप वर्तमान का पूरा आनंद लेना सीख जाओगे तब इस जिंदगी से तनाव कम होगा चिंताएं खत्म होगी।

श्रीमद भगवद गीता – मौत से डरना बिल्कुल व्यर्थ है

गीता का यह अन्य उपदेश यह है की मौत से डरना बिल्कुल व्यर्थ है श्री कृष्णा ने गीता में कहा है यह संसार मृत्यु लोक है। जिसका भी जन्म हुआ है वो एक दिन जरूर मर जाएगा जिसका आरंभ हुआ है उसका अंत अवश्य होगा। हम इसे रोक नहीं सकते जैसे हम रोज कपड़े बदलते हैं वैसे ही हमारी आत्मा नया शरीर धरण करती है।

मृत्यु सिर्फ इस जीवन का एक नया आरंभ है इस जीवन का अंत नहीं है आत्मा कभी नहीं मरती और ना ही उसे कोई मार सकता है। लेकिन मौत का डर मनुष्य को सबसे ज्यादा लगा रहता है मौत का दुख भी इंसान को सबसे ज्यादा होता है। 

श्रीमद भगवद गीता – मन और विचारों पर काबू

मन और विचारों को काबू किये बिना जीवन में कभी शांति और सुकून मिलने वाला ही नहीं है। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा की मेरा मन सही गलत सब कुछ जानता है फिर भी मेरे विचार और मेरा मन मेरे वश में नहीं होता। मैं करना चाहता हूं वो कर नहीं पता हूं और जो नहीं करना चाहता हूं वो मेरा मन मुझे से जबरदस्ती करवाता है। इसीलिए मैं बेचैन हो गया हूं मुझे शांति की प्राप्त नहीं हो रही।

श्री कृष्णा ने अर्जुन से कहा उसके लिए तुझे अपने मन और विचारों से मुक्त होकर अपने मन और विचारों को सही दिशा में ले जाने का अभ्यास करना होगा। ये एक दिन का काम नहीं है जब तक तू अपने मन और विचारों की गुलामी का त्याग नहीं करता तब तक तुझे जीवन में कभी शांति नहीं मिलेगी। 

श्रीमद भगवद गीता – वासना क्रोध और लालच सर्वनाश का करण है

श्रीमद भगवद गीता का अन्य उपदेश ये है की वासना क्रोध और लालच सर्वनाश का करण है नरक का द्वार है। जिस भी मनुष्य में ये तीन अवगुण होते हैं वो हमेशा दूसरों को दुख पहुंचा कर अपने ही सुख और स्वार्थ की पूर्ति करता राहत है। किसी भी चीज की हद से ज्यादा वासना करना और क्रोधी स्वभाव होना और मन में लालच होना उसके जीवन के सुख को समाप्त कर देते हैं।

उसके सारे रिश्तों में जहर भर देते हैं। इन्हें नरक का द्वार इसीलिए कहा गया है क्योंकि जिस इंसान में अधिक क्रोध है लालच है वासना है उसका पूरा जीवन जहर से भर जाता है उसको मरने के बाद नहीं जीते जी यही पर नरक का दर्शन होता है।

सारे जगत की उत्पत्ति और पालन करने वाला

श्री कृष्ण ने गीता के अध्याय विभूति योग में बताया है की जितने भी जगत के देवी-देवता हैं वो सब मेरी ही विभूति है। मैं ही शिव हूं मैं ही इंद्र हूं मैं ही यशराज कुबेर भी हूं मैं ही अग्नि देव हूं देवताओं के गुरु बृहस्पति भी मैं हूं समुद्र भी मैं ही हूं ओम भी मैं ही हूं। काल का महाकाल भी मैं ही हूं सारे जगत की उत्पत्ति और पालन करने वाला भी मैं ही हूं।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा की मेरी विभूतियो का कोई अंत नहीं है। इसलिए सब भगवान सब नाम सब देवता मेरे ही रूप है। इसीलिए किसी भी देव या ईश्वर में कभी भेद मत करना कभी किसी को छोटा बड़ा मत समझना। कभी भी किसी दूसरे के इष्ट को छोटा नहीं समझना चाहिए या इस बात पर झगड़ा फसाद नहीं करने चाहिए की कौन बड़ा है और कौन छोटा है।

सुख की इच्छा ही आखिर में हमारे दुखों का करण बनती है।

का अन्य उपदेश ये है की सुख की इच्छा ही आखिर में हमारे दुखों का करण बनती है। श्री कृष्णा ने अर्जुन से कहा की मनुष्य जितना सुखो की लालसा और इच्छा करता है उतना ही उसकी इंद्रियां सुख भोग में आसक्त हो जाति है। उतना ही इंसान का मन संसार के सुख और आकर्षण का गुलाम बन जाता है। और जितना सुख के पीछे भागेगा उतना ही उसे दुख के अनुभव से भी गुजरा पड़ेगा क्योंकि यह संसार का नियम है। जो चीज शुरू में मन को बहुत आकर्षित करती हैं बाद में बहुत दुख देती हैं। 

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