ॐ (Om), ओम, ओमकार मंत्र (Mantra) का रहस्य
क्या आपको ओम मंत्र (Om Mantra) के बारे में सही और विस्तार पूर्वक जानकारी है ? आप ये तो जानते ही होंगे की ओम मंत्र की ध्वनि मन और चित्त पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।ओम के कई अन्य गूढ़ रहस्य भी हैं जो हर किसी को ज्ञात नहीं, यदि एक साधारण मनुष्य इन रहस्यों के मूल्य को जान ले तो वह शिव का अंश प्राप्त कर सकता है। ऐसे मनुष्य की सारी दरिद्रता दूर हो जाती है अगर आप ओम मंत्र के गूढ़ रहस्यों को जानना चाहते हैं, तो इस सम्पूर्ण लेख को ध्यान पूर्वक पढ़े और अमूल्य ज्ञान को अर्जित करे। ये जानकारिया वेदो और उपनिषदों से प्राप्त की गयी हैं, माण्डूक्योपनिषद में इसका विस्तार पूर्वक वर्णन है।
ओम मंत्र के ज्ञान को जान कर आपको ज्ञात होगा
- आत्मा क्या है ?
- मोक्ष क्या है ?
- ब्रह्म क्या है ?
यह कथा इस प्रकार है की प्राचीन काल में एक सन्यासी को एक गुप्त मंत्र के बारे में पता चला। की यदि यह गुप्त मंत्र जिसको मिल जाता है वह धनवान और भाग्यवान हो जाता है। पर इस मंत्र को एक ऋषि जानते थे वह धन प्राप्ति के लालच के वशीभूत हो कर उन ऋषि के पास पंहुचा।
सन्यासी ने ऋषि से आग्रह किया की हे ऋषि आप मुझे वह गुप्त मंत्र दें ऋषि गुप्त मंत्र देने को तैयार हो गए। ऋषि ने सन्यासी के सामने एक शर्त रखी की तुमको मेरे आश्रम में रह कर सेवा देनी होगी उसके पश्चात् मै तुमको गुप्त मंत्र दूंगा। सन्यासी ऋषि की इस शर्त को मान कर अपनी सेवा आश्रम में देने लगा इसी प्रकार कई वर्ष बीत गए।
अब सन्यासी को लगा की अब ऋषि को वह गुप्त मंत्र मुझे दें देना चाहिए। सन्यासी ने ऋषि से गुप्त मंत्र देने का आग्रह किया ऋषि ने सन्यासी को पास बुलाया और धीमे से कान में गुप्त मंत्र ॐ दिया और इसका जाप करने को कहा। सन्यासी प्रसन्न हो कर अपने घर जा कर ओम मंत्र का जाप करने लगा काफी समय बाद भी उसको कोई धन प्राप्त नहीं हुआ।
उसको लगा ऋषि ने उसे मुर्ख बनाया है वह घर के बहार निकला तो एक वृद्ध महिला अपने बेटे को ओम कह कर बुला रही थी। उसने देखा कुछ ब्राह्मण भी ओम हरी,ओम हरी कह रहे थे वंही उसने कुछ विद्यार्थी देखे जो ओम शान्ति, ओम शान्ति का मंत्र जाप कर रहे थे।
जब सन्यासी ने यह देखा वह ऋषि के पास गया और कहा आपने मुझे ओम का गुप्त मंत्र दिया था। यह ओम मंत्र तो सभी को पता है तो यह गुप्त मंत्र कँहा रहा। तब ऋषि ने कहा मैं तुमको दूसरा मंत्र दूंगा पर तुम्हे एक काम करना होगा।
ऋषि एक पत्थर ले कर आये और सन्यासी को दिया और कहा बाजार में इसका मूल्य पता करके मुझे बताओ पर इस पत्थर को बेचना नहीं है। सन्यासी इस पत्थर को लेकर बाजार गया और उसने काफी दुकानों पर पत्थर दिखाया पर इस पत्थर को लेने वाला नहीं मिला। कोई इसको मुफ्त में भी लेना नहीं चाहता था इस कारण सन्यासी काफी दुखी हुआ।
बाजार में घूमते घूमते ही वह एक जौहरी की दुक़ान पर गया और उस पत्थर का मूल्य पूछा उस पत्थर को देख जौहरी दंग रह गया। उसने सन्यासी से पूछा की तुम इसको कँहा से लाये हो यह बहुत ही महगा रत्न है, और मैं अपना सब कुछ बेच कर भी इसको खरीद नहीं पाउँगा।अब सन्यासी खुश होकर ऋषि के पास गया और उस पत्थर का मूल्य बताया। और ऋषि से कहा जब आपको इसका मूल्य पता था तो आपने मझे बाजार क्यों भेजा। तब ऋषि ने कहा की यह मैंने इसलिये किया की तुम ओम मंत्र का मूल्य जान सको।
जिस प्रकार एक रत्न का मूल्य सभी को नहीं पता उसी प्रकार ओम के मंत्र का मूल्य भी सभी नहीं जानते। जो लोग ओम मंत्र का मूल्य जान जाते हैं वे हर तरह से समृध्द हो जाते हैं। उसके बाद ऋषि ने सन्यासी को ओम मंत्र का गुप्त ज्ञान बताया।
ॐ मंत्र गुप्त ज्ञान और मूल्य ऋषि ने सन्यासी को बताया देवताओ के सेनापति कार्तिकेय कुमार ने भगवान् शिव को ॐ मंत्र का ज्ञान दिया था। उन्होने बताया उनके अनुसार ॐ एक ऐसी ध्वनि है जो बिना किसी माध्यम के इस ब्रह्माण्ड में स्वतः निर्मित होती है। इसके लिए किसी भी यन्त्र की आवश्यकता नहीं। इस को हम नाद ,ध्वनि ,शब्द और अक्षर भी कहते हैं।
ओम अथवा ॐ (OM) तीन ध्वनि के संयोजन से बना है
- अ ध्वनि
- उ ध्वनि
- म ध्वनि
एक उपनिषद माण्डूक्य के अनुसार ओम जगत की उत्पत्ति और ब्रहमांड की वास्त्विक ध्वनि का प्रतीक है।
ओम, ॐ में छिपे कुछ विशेष दैवीय गुण
अ – सृजन का प्रतीक है
उ – संसार का प्रतीक है
म – संसार की ध्वनि या लय का प्रतीक है।
ओम, ॐ आत्माओं के तीन प्रकार के गुण भी बताता है।
1- जाग्रत – इस में मनुष्य अपने भौतिक इन्द्रियों के भोग को भोगता है।
2- स्वपन – इस अवस्था में व्यक्ति सोते हुए अपने मन से भोग को भोगता है।
3- सुषप्ति अवस्था – इस अवस्था में जीव की आत्मा ब्रह्म ज्ञान प्राप्त कर लेती है।
ये तीनो अवस्थाओं को प्राप्त कर आत्मा ब्रह्म तत्त्व में लीन हो जाती है और उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके बाद आत्मा शिव में लीन हो जाती है ऐसे व्यक्ति की आत्मा को हमेशा ॐ का अनहद नाद सुनाई दने लगता है।
अनहद नाद क्या है ?
अनहद नाद कोई ध्वनि नहीं यह एक दैविक अहसास है इसमें आत्मा को ज्ञात होता है। की मैं ही ब्रह्म हूँ ,मैं ही शिव हूँ ,मैं ही ओमकार हूँ मैने ही इस ब्रह्माण्ड का विस्तार किया है। मैं ही इस ब्रह्माण्ड के हर अंश में उपस्तिथ हूँ मैं ही अपना पिता हूँ मैं ही अपनी माँ हूँ इस संसार में मैं ही एक मात्र हूँ।
मैं ही बोलने वाला हूँ मैं ही सुनने वाला हूँ। ॐ के इस ज्ञान को जानने के बाद संसार के सभी भौतिक आनंद ,सोना ,चाँदी मिटटी का स्वरूप दिखते हैं। मैं इतना अमीर हूँ की इस ब्रह्माण्ड में जो भी है वह मेरा है। ऐसा इसलिए होता है क्यों की मनुष्य शिव केअंश में लीन हो जाता है।
ॐ से निर्मित कुछ नैसर्गिक उत्पत्तियाँ
तीन नैसर्गिक ध्वनियाँ
- अ ध्वनि
- उ ध्वनि
- म ध्वनि
तीन नैसर्गिक रंग
- लाल
- पीला
- नीला
प्रकृति के तीन नैसर्गिक लक्षण
- नाम
- रूप
- गुण
शरीर के नैसर्गिक लक्षण
- कफ
- पित्त
- वायु
ब्रह्माण्ड के तीन नैसर्गिक लक्षण
- उत्पन्न
- पालन
- प्रलय
ब्रह्माण्ड के तीन नैसर्गिक देवता
- ब्रहम्मा
- विष्णु
- महेश
पदार्थ के तीन नैसर्गिक तत्त्व
- इलेक्ट्रॉन
- प्रोटोन
- न्यूट्रॉन
ब्रह्माण्ड के प्रथम तीन आयाम
- लंम्बाई
- ऊचाई
- गहराई
धन्यवाद !