प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री की हत्या का षडयंत्र 1966

प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी 1964 में देश के प्रधान मंत्री बने

भारत के दूसरे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी 1964 में देश के प्रधान मंत्री बने। वे लगभग 18 महीने तक भारत के प्रधानमंत्री पद पर रहे। उनकी मृत्यु “ताशकन्द” वर्तमान उज़्बेकिस्तान, सोवियत संघ रूस में पकिस्तान से समझौते के बीच 11 जनवरी 1966 को सहस्यमयी मौत हो गयी।

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उनकी इस मृत्यु को कुछ ने हार्ट अटैक बताया जो गले से नहीं उतरता। दूसरी तरफ बड़ी तादाद में लोगो ने कहा की प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की डेथ एक हत्या है। इस हत्त्या की ना तो कोई जाँच हुयी और जो लोग उनके साथ ताशकन्द पकिस्तान समझौते के लिए गए थे वे भी एक एक कर मर गए।

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु पर इंद्रा गाँधी का जवाब

प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु के बारे में जब इंदिरा जी से पूछा गया तब उनका जवाब भी अजीब था। उनका जवाब था सारे रिकॉर्ड कहते हैं कि शास्त्री जी की डेथ एक नैचरल डेथ थी, हार्ट अटैक से हुई थी। लेकिन कुछ फैक्ट ऐसे हैं जो मर्डर की पॉसिबिलिटी की ओर इशारा करते।

भारत के प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी मृत्यु किसी दूसरे देश में हो जाती है और कोई भी इसको गंभीरता से नहीं लेता। चलिए जानते हैं की लाल बहादुर शास्त्री जी के साथ  “ताशकन्द” वर्तमान उज़्बेकिस्तान में क्या हुआ जिससे उनकी मृत्यु हो गयी। उससे पहले प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी को जानना जरुरी है।

प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का बचपन

भारत के दूसरे प्राइम मिनिस्टर लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय (वाराणसी) में हुआ था। उनके पिताजी का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था जो प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। उनकी माता रामदुलारी एक सामान्य ग्रहणी थी। जन्म के 2 वर्ष के भीतर ही उनके पिता का देहांत हो गया। और उनका बचपन ननिहाल में गुजरा, नाना की मृत्यु के बाद उनके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने उनके परिवार का सहयोग किया। 

प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने बनारस के काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हटाकर प्रधान मन्त्री शास्त्री शब्द अपने नाम से जोड़ा। शास्त्री जी का कद 5 फ़ूट 2 इंच था इसलिए घर पर लोग उनको नंन्हे कह कर पुकारते थे। वे कद में जरूर छोटे थे पर उनका व्यक्तित्व बहुत उच्च श्रेणी का था। 24 वर्ष की आयु में उनका विवाह मिर्जापुर के गणेश प्रसाद की बेटी ललिता से हुआ। लाल बहादुर शास्त्री जी एक सामान्य परिवार से थे वे देश की स्वतंत्रता के लिए लड़े।

लाल बहादुर शास्त्री जी का राजनीति में आगमन

शिक्षा पूरी होने के बाद वे भारतीय सेवक संघ से जुड़ गए और देश की सेवा में लग गए। वे अहिंषा के मार्ग को अपना कर आगे बढे और भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया।

जवाहरलाल नेहरू की  27 मई, 1964 को मृत्यु हो गयी। इस समय देश के हालत ठीक नहीं थे भारत को एक सही निर्णय लेने वाले नेता की जरुरत थी। इस कारण शास्त्री जी को 1964 में देश का प्रधान मन्त्री बनाया गया। 9 जून 1964 को लाल बहादुर शास्त्री जी ने भारत के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया।

देश के हालत ख़राब थे और 1965 में भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। जिससे निपटने  के लिए लाल बहादुर शास्त्री जी जैसे नेतृत्व की देश को जरुरत थी।

आजादी के बाद 1964 में देश के हालात

भारत को 1947 में आजादी जरूर मिल गयी थी, पर देश अब भी अपनी सीमाओं की देख रेख करने की हालत में नहीं था। देश भुखमरी से जूझ रहा था हमारे देश के सैनिको को भर पेट भोजन नहीं मिल पा रहा था। इन हालातो में देश के सैनिक देश की सीमा की निगरानी करने में सक्षम नहीं थे।

तब शास्त्री जी ने देश को एक महत्वपूर्ण “जय जवान जय किसान” नारा दिया। देश वाशियो से एक समय का भोजन त्यागने को कहा जिससे देश अपने सैनिको को सीमा पर भोजन भेज पाए। शास्त्री जी के कहे अनुशार देशवासिओ ने अपना एक समय का भोजन सैनिको को भिजवाया।

1965 में पाकिस्तान ने भारत पर अटैक किया

जब पाकिस्तान ने भारत पर अटैक किया तब, देश की सेना ने 1965 में शास्त्री जी के कार्यकाल में पाकिस्तान को मुँह तोड़ जवाब दिया। भारत की सेना LOC से आगे पकिस्तान में लाहौर तक घुस गयी। यह देख अमेरिका ने भारत और पकिस्तान के बीच शांति वार्ता के लिए शास्त्री जी के सामने प्रस्ताव रखा।

शास्त्री जी हिंसा नहीं चाहते थे और वे इसके लिए तैयार हो गए। शांति समझौते के लिए सोवियत संघ रूस मध्यस्ता के लिए आगे आया जो दोनों देशो का मित्र देश था। और ताशकन्द वर्तमान उज़्बेकिस्तान, सोवियत संघ रूस में दोनों देश के राजनेता एकत्र हुए।

ताशकंद ट्रीटी (समझौता)

भारत से शास्त्री जी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान दोनों को ताशकंद में बुलाया गया। इस समझौते में यह कहा गया की “Countries will adopt same position” इस अनुसार दोनों देश अपनी सीमा पर वापस आ जाये।

शास्त्री जी इस समझौते के लिए तैयार हो गए और भारत ने अपनी सेना को वापस बुला लिया। इस समझौते का देश में विरोध भी किया गया। जिससे लाल बहादुर शास्त्री को भी इस बात का दुःख था। 

ताशकन्द में लाल बहादुर शास्त्री जी की हत्या या मौत ?

10 जनवरी 1966 में ताशकंद ट्रीटी (समझौता) होने के बाद 11 जनवरी को रात करीब 2 बजे लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु हो जाती है। ताशकन्द में लाल बहादुर शास्त्री जी के साथ कई लोग गए थे।

जिनमे उनका रसोइया राम नाथ ,डॉक्टर आर०एन०चुघ, सहायक और अन्य सलाहकार भी थे। समझौता हो जाने के बाद प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी उस रात वंही रुकते हैं। रसोइया राम नाथ और डॉक्टर आर०एन०चुघ शास्त्री जी के काफी करीबी माने जाते थे। 

रुसी इंटेलिजंस एजेंसी का दावा

उस रात शास्त्री जी का खाना रामनाथ ने नहीं बनाया बल्कि जान मोहमद ने बनाया था। जान मोहमद अमेरिका और रूस में भारत के राजदूत त्रिलोकी नाथ कौल का रसोइया था। खाना बनाते समय जान मुहमद की दो महिलाओ ने मदद की थी जो रुसी इंटेलिजंस एजेंसी की थी।

मृत्यु के बाद में रुसी इंटेलिजंस एजेंसी ने दवा किया की शास्त्री जी को खाना परोशने से पहले उसको रुसी इंटेलिजंस एजेंसी ने उसको खा कर देखा था।

शास्त्री जी के रसोइये रामनाथ को खाना बनाने नहीं दिया गया था।

बताया जाता है की रात 3 बजे शास्त्री जी के डॉक्टर आर०एन०चुघ को पता चलता है की शास्त्री जी की मृत्यु हो चुकी है। उनके अनुशार उनको सही समय पर यह जानकारी नहीं दी गयी थी।

शास्त्री जी का सरीर नीला पड़ चुका था जिसको हार्टअटैक का नाम दिया जा चुका था। शास्त्री जी के रसोइये ने बतया था की उस रात का खाना उनके रसोइये रामनाथ को नहीं बनाने दिया गया था।

शास्त्री जी की मृत्यु की समीक्षा करने वाले लेखक अनुज धर

लेखक अनुज धर ने किताब “Your Prime Minister is Dead” में पूरी घटना की समीक्षा करते हुए इस घटना की तीन थ्योरी को व्यक्त किया है।

  • अमेरिका की खूफिया एजेन्सी CIA ने ताशकंद समझौता फेल ना हो इसलिए शास्त्री जी का मर्डर किया।
  • रशियन इन्टेलिजेन्स ने शास्त्रीजी को जहर देकर मारा
  • भारत के ही नेता ने अपनी राजनीती चमकाने के लिए शास्त्री जी का मर्डर करवाया।

लाल बहादुर शास्त्री जी के पोस्टमॉर्टम को नहीं होने दिया गया

शास्त्रीजी के पोस्टमॉर्टम से डेथ के रीज़न साफ साफ क्लिअर हो सकते थे। रसियन इन्टेलिजेन्स ने शास्त्री जी की बॉडी का पोस्टमॉर्टम करने लिए कहा पर भारत के कुछ बड़े नेताओ ने शास्त्री जी का पोस्टमार्टम नहीं होने दिया। जबकि लाल बहादुर शास्त्री जी पत्नी और उनकी बेटी उनका पोस्टमार्टम कराना चाहते थे।

लाल बहादुर जी के शव से प्रतीत हो रहा था की उनकी हत्त्या हुयी है

जब शास्त्री जी को लाया आया गया तब उनकी बॉडी पर नीले निशान थे। उंनका शरीर भी बहुत फूल गया था जबकि उनकी मौत को लगभग सिर्फ 12 घंटे ही हुए थे। शास्त्री जी के शरीर पर कुछ जखम थे जिनसे खून बह रहा था। जब उनकी पत्नी ने इन निशानों के बारे में पूछा तब उनके पूरे शरीर पर चंदन लगा दिया गया ताकि ये निशान न दिखे।

एक जख्म जो उनके गले के पीछे था उस पर उनके परिवार का ध्यान गया यह गले के पीछे था। उस जख्म को देख कर लग रहा था की किसी ने जान कर उसको किसी ख़ास मकशद से किया था वह देखने में गोल था। उनके मृत शरीर के पास किसी भी फैमिली मेंबर को जाने से रोका गया था।शास्त्री जी जो जवाहर कोट पहनते थे वो खून से सना हुआ था जो आज भी संग्रहालय में रखा है।

शास्त्री जी के मृत्यु की जाँच

जब सरकार बदली और कुछ लोगो ने शास्त्री जी की मृत्यु की जाँच की मांग की तब जाँच शुरू हुयी। ताशकंद में शास्त्री जी के साथ गए तीन मुख्य गवाह के रूप में सामने आये जिनसे पूछताछ की जानी थी।

उनमे शास्त्री जी के डॉक्टर आर०एन०चुघ दूसरा उनका रसोइया राम नाथ और तीसरा अमेरिका और रूस में भारत के राजदूत त्रिलोकी नाथ कौल का रसोइया जान मोहमद, जिसने उस रात शास्त्री जी का खाना बनाया। सामन्यता राम नाथ ही शास्त्री जी का भोजन बनता था पर उस रात जान मोहम्मद ने शास्त्री जी का भोजन बनाया था।

शास्त्री जी के गवाहों की संदेह पूर्ण मृत्यु

शास्त्री जी मृत्यु के 11 साल बाद, 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने पर एक जाँच कमेटी बनायीं गयी जिसका नाम था राजनारायण कमेटी। शास्त्री जी के डॉक्टर आर०एन०चुघ और रसोइया राम नाथ मान जाता है की ये ही बता सकते थे की उनके साथ उस रात क्या हुआ।

लेकिन ये जान आपको हैरानी होगी की पुछताछ से पहले डॉक्टर आर०एन०चुघ की एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो जाती है। इसके बाद राम नाथ भी एक हादसे में अपनी यादास्त को देता है। 

उस रात शास्त्री जी का खाना बनाने वाले अमेरिका और रूस में भारत के राजदूत त्रिलोकी नाथ कौल, का रसोइया जान मोहमद को रूस की सरकार पकड़ती है पर बाद में उसे भी छोड़ दिया जाता है। जान मोहमद को बाद में राष्ट्रपति भवन में नौकरी दे दी जाती है। शास्त्री के दो गवाह के साथ हादसे और एक को राष्ट्रपति भवन में नौकरी यह कोई सोची समझी साजिश की ओर इशारा करती है।

शास्त्री जी की मृत्यु में अमेरिका के CIA एजेंट का खुलाशा

शास्त्री जी की मृत्यु में अमेरिका का नाम बीच में नहीं आया लेकिन ताशकंद समझौते की पहल अमेरिका ने ही की थी। उस समय अमेरिका पाकिस्तान का मित्र देश था उसने सोवियत संघ रूस को बीच में लेकर समझौता कराने की पहल की थी। उसके बाद वह इस समझौते से गयाब सा हो गया कंही उसका नाम नहीं आया। 

पर अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी CIA के एजेंट रॉबर्ट क्राउली ने एक खुलाशा किया। CIA एजेंट रॉबर्ट क्राउली ने साल 1993 में एक अमेरिकी पत्रकार ग्रेगरी डगलस को एक इंटरव्यू में बताया की, CIA ने ही 1966 में लाल बहादुर शास्त्री और डॉ होमी जंहागीर भाभा की हत्या कराई थी। 

रॉबर्ट क्राउली ने पत्रकार से ये भी कहा था की उनके इस इंटरव्यू को उसके मरने के बाद ही प्रकाशित किया जाये। CIA एजेंट रॉबर्ट क्राउली ने इसका कारण भी बतया उसने बताया की अमेरिका को डर था, की रूस के हस्तछेप से भारत मजबूत होगा और पाकिस्तान की हार से उसके सुपर पावर बनने की छवि खराब होगी।

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु पर निष्कर्ष

इतने सारे सबूत और साक्ष्य होने के बाद भी पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु की वजह पता नहीं चल पायी है। उस समय भारत की कांग्रेस सरकार ने या तो सबूतों को मिटा दिया या उनको गयाब कर दिया गया।

इस प्रकार हमारे देश के साधारण व महान नेता लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु देश की राजनीती को करारा तमाचा जड़ती प्रतीत होती है।

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