ज्ञानवापी मस्जिद और मंदिर विवाद
ज्ञानवापी मस्जिद |
MUST READ-ब्रहमांण्ड Universe कैसे और किसने बनाया विज्ञान भी नहीं सुलझा पाया ये गुत्थी।
एक बार फिर हमारे देश में निकला मंदिर और मस्जिद का जिन्न। आपने अयोध्या में मंदिर और मस्जिद को लेकर वर्षो से चले आ रहे विवाद को देखा और सुना होगा। यह विवाद बहुत लम्बे समय तक चला और देश में जगह जगह हिन्दु मुस्लिम दंगे भी हुए। अब यह विवाद हमारे सर्वोच्च न्यालय के फैसले के बाद सुलझ चुका है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई जो की पांच बेंचो की अध्यक्छता कर रहे थे उन्होंने कहा की हमारा फैसला सबूतों के आधार पर दिया गया है इसमें किसी धर्म विशेष की कोई दखल नहीं है।
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास
ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास काफी पुराना रहा है और इस पर लोगो के अलग अलग विचार हैं। कहा जाता है की ज्ञानवापी मस्जिद के पहले यह एक शिव मंदिर था। इस शिव मंदिर को 1669 में मुहम्मद औरंग जेब ने तुड़वाकर मस्जिद का रूप दे दिया और मंदिर के अवशेष दबा दिए। कुछ लोग का कहना ये भी है की औरंग जेब ने मंदिर को तोड़ कर आधे हिस्से में मस्जिद बनाई थी। मदिर के मलवे का उपयोग मस्जिद को बनाने में किया गया। साल 1735 में महारानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी मस्जिद के करीब काशी विश्वनाथ मंदिर की स्तापना की। हिंदू धर्म के लोगो ने कई बार ज्ञानवापी मस्जिद को हिन्दुओ को सौपने का आग्रह किया। अग्रेजो के शासन में अंग्रेजो के मुस्लिम समुदाय और मुग़ल शासको के साथ अच्छे रिश्ते रहे क्योंकि दोनों ही भारत देश को लूट रहे थे। ज्ञानवापी मस्जिद पर हिन्दुओ के आग्रह को शासको ने ठुकरा दिया। 1937 में एक फैसले में ज्ञानवापी मस्जिद को मुस्लिम समुदाय को सौंप दिया। अब ज्ञानवापी मस्जिद पर मुस्लिम समुदाय का पूर्ण अधिकार हो गया था।
1991 में एक बार फिर अदालत पहुंचा मामला
1937 से लेकर 1990 तक ज्ञानवापी मस्जिद पर कोई विवाद नहीं उठा और मुस्लिम समुदाय का पूरा हक़ ज्ञानवापी पर रहा। लेकिन 1991 में इस मुद्दे को फिर से उठाया गया हिन्दू पक्ष की और से प्रो राम रंग शर्मा, हरिहर पण्डे ,सोमनाथ व्यास ने ज्ञानवापी मस्जिद की जाँच और मस्जिद परिसर में पूजा करने की आज्ञा देने के लिए एक याचिका दायर की।
उपासना स्थल विशेष उपबंध अधिनियम, 1991
1991 में हिन्दू पक्ष की और से दायर याचिका और ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेछण की मांग के कारण ससंद ने एक नया कानून “उपासना स्थल विशेष उपबंध अधिनियम, 1991 बनाया गया। इस कानून के अनुसार 1945 से पहले बने किसी भी धार्मिक स्थल मंदिर या मस्जिद में कोई बदलाव नहीं किया जायेगा। 1998 में कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेछण के आदेश दिए। पर मस्जिद समिति की ओर से इस फैसले को इलाहबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी और इसके बाद ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेछण के आदेश पर रोक लगा दी गयी।
2019 में वाराणसी कोर्ट में एक बार फिर इस मामले पर सुनवाई सुरु हुई।
वर्ष 2021 में ज्ञानवापी मस्जिद के परिषर में स्थित श्रंगार गौरी के मंदिर में पूजा करने और मस्जिद के सर्वे के लिए कुछ महिलाओ ने एक बार फिर कोर्ट में याचिका दायर की। इस याचिका के अनुसार फास्टट्रैक कोर्ट ने अंत में ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे की अनुमति दी।
ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे की अनुमति दिए जाने पर ज्ञानवापी मस्जिद समिति के सदस्यों और मुस्लिम धर्म गुरुओ ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। और इसको तत्काल रोकने को कहा पर कोर्ट ने अपना आदेश वापस नहीं लिया। और सर्वे की तारीख तय कर दी गयी मस्जिद के सर्वे के लिए एक टीम बनायीं गयी और भारी पुलिस बल की उपस्तिथि में इस सर्वे को कराने के आदेश दे दिए गए।
ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे की रिपोर्ट पेश करने की तारीख 17 मई सुनिश्चित की गयी पर यह सर्वे 17 मई की जगह 19 मई को पूरा हुआ।
ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे और विडिओग्राफी
ज्ञानवापी मस्जिद प्रतिष्ठित काशी विश्वनाथ मंदिर के करीब स्थित है। वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे अदालत द्वारा गठित आयोग ने किया। सत्र न्यायलय ने सिविल जज ने वकील अजय कुमार मिश्र को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया और मस्जिद मे सर्वे करवाने को कहा। साथ ही इस सर्वे की रिपोर्ट 17 मई तक कोर्ट में दाखिल करने को कहा। मुस्लिम समुदाय ने इसका विरूद्ध किया और कोर्ट द्वारा गठित टीम में फेर बदल भी कराये। अंत में भरी सुरक्षा के बीच सर्वे पूरा हुआ और सर्वे की रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी गयी।
ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे की रिपोर्ट में क्या मिला
सर्वे में की रिपोर्ट में बताया गया की मस्जिद के भीतर वजू खाने में जाँच करने पर एक बड़ा शिवलिंग मिला है। वजू खाना जंहा नवाज पढ़ने से पहले नवाजी पानी से हाथ धोते हैं में हिन्दू पछ के कहने पर वजू खाने में भरे पानी को बहार निकला गया और इसी पानी में शिवलिंग मिला जिसको पानी भर कर छुपाया गया था। इसके आलावा दीवारों पर कई हिन्दू देवी देवताओं की कला कृतियां भी मिली जिनको नुकसान पहुंचाया गया था। इसके आलावा एक छोटा शिव लिंग भी मिला। ऐसे कई सबूत मिले जो दर्शाते थे की मंदिर को तोड़ कर ऊपर मस्जिद को बनाया गया है।
सबूत मिलने के बाद क्या कार्यवाही हुयी।
मस्जिद में हिन्दू मंदिर के सबूत मिलने पर कोर्ट ने शिव लिंग को सीआरपीएफ की सुरक्षा दी जाने की बात कही और वजू खाना बंद करा दिया। कोर्ट ने पुराने वजू खाने की जगह किसी दूसरे स्थान पर वजू करने की सुविधा देने के लिए कहा। मस्जिद में नमाज पढ़ने वालो की संख्या काम कर दी गयी। इन फसलों के बाद मुस्लिम समाज ने इसका विरोध किया पर कोर्ट के फैसले के आगे मुस्लिम समाज को झुकना पड़ा। सर्वे में कई जगह मलवे में पड़ी दीवारों पर हिंदी देवी देवताओ की कलाकृतियां मिली जिस से साफ़ था की मंदिर को तोडा गया है। अब हिन्दू पांच वजूखाने के निचे बने तह खाने को खुलवाने की मांग कर रहे थे।
वनारस के कशी विश्वनाथ मदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद पर फैसले का इन्तजार
अब हिन्दू पांच कह रहा है की जानवापी मस्जिद की जगह जल्द ही मंदिर स्थापित किया जायेगा। इस लड़ाई को अयोद्ध्या के राम मंदिर और बाबरी मस्जिद की तरह 50 साल तक नहीं खींचा जाना चाहिए। वनारस के कशी विश्वनाथ मदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद के ऊपर जल्द ही आदेश का इन्तजार बेसब्री से किया जा रहा है।
बाबरी मस्जिद और मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार
1 -अयोध्या में बनी बाबरी मस्जिद बाबर के समय बाबर के जर्नल मेरे बाकी ने मस्जिद बनवाई थी।
2 – एक FIR के अनुसार १९४९ में बाबरी मंदिर के भीतर मुख्य गुम्बद में राम लाला की मुर्तिया राखी गयी थी २२ दिसम्बर १९४९ को महंत अभिराम दास के साथ ५० से ६० लोगो ने ये मूर्तिए रखी गई थी।
3- निरमोही अखाड़े का दावा निरस्त कर दिआ गया।
4- सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा ख़ारिज किया गया।
5- खुदाई में मिले अवशेष इस्लामिक नहीं हैं।
अंत में SC का फैसला आया की विवादित जमी राम लाला को दी गयी है। और मस्जिद के लिए किसी अन्य जगह पर ५ एकड़ जमीं सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी गयी।