बेटे संजय गाँधी (Sanjay Gandhi) ने इंदिरा गांधी को मारे थे छह थप्पड़
Sanjay Gandhi का जीवन बहुत ही विवादास्पद रहा। उन्हें एक महत्वाकांक्षी और कुशल नेता के रूप में देखा जाता है, लेकिन उन्हें एक निरंकुश और दमनकारी नेता के रूप में भी देखा जाता है। संजय गांधी (Sanjay Gandhi) का जीवन भारतीय राजनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है।
संजय गांधी के जीवन पर कई पुस्तकें लिखी गई हैं। इनमें से कुछ प्रमुख पुस्तकें निम्नलिखित हैं:
“द संजय स्टोरी” (विनोद मेहता)
“संजय गांधी: एक राजनीतिक जीवन” (एम.जे. खन्ना)
“संजय गांधी: एक जीवनी” (के.एन. सिंह)
“संजय गांधी: एक व्यक्तिगत विवरण” (मेनका गांधी)
इन पुस्तकों में संजय गांधी के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।
इन किताबो में संजय गाँधी (Sanjay Gandhi) के बहुत गुप्त बातो का पता चलता है। इस लेख में मैंने इन्ही किताबो में दी गयी गुप्त बातो बताने की कोशिस की है। इन किताबो में ऐसी बातो का उल्लेख है जिसको दुनिया नहीं जानती।
संजय गाँधी का जन्म और शिक्षा
संजय गाँधी का जन्म 14 दिसंबर, 1946 को दिल्ली में हुआ था। वे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र थे। संजय गांधी की माँ इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) उस समय भारत की प्रधानमंत्री नहीं थीं लेकिन उनके पिता, फ़िरोज़ गाँधी, कांग्रेस पार्टी के एक बड़े नेता थे। संजय गांधी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वेल्हम बॉयज़ स्कूल और देहरादून के दून स्कूल में प्राप्त की।
संजय गांधी (Sanjay Gandhi) को कारों का शौक
संजय गांधी (Sanjay Gandhi) को बचपन से ही कारों का बहुत शौक था। स्कूल के दिनों से ही उन्होंने कारों को लेकर प्रयोग करना शुरू कर दिया था। उन्होंने कारों के बारे में बहुत कुछ पढ़ा और सीखा। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, संजय गांधी इंग्लैंड चले गए और उन्होंने रोल्स-रोयस कार कंपनी में तीन साल तक इंटर्नशिप की।
बिना किसी पद के इंदिरा गाँधी विशेष सलाहकार
संजय गांधी (Sanjay Gandhi) भारत लौटने के बाद, उन्होंने अपनी माँ, इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के राजनीतिक जीवन में सक्रिय भूमिका निभाना शुरू कर दिया। इंदिरा गांधी ने 1971 में, संजय गांधी को अपनी सरकार में बिना किसी पद के विशेष सलाहकार के रूप में शामिल किया। संजय गांधी (Sanjay Gandhi) ने जल्द ही अपनी माँ के राजनीतिक सलाहकार के रूप में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर लिया।
संजय गांधी (Sanjay Gandhi) का नसबंदी अभियान का नेतृत्व
1975 में, इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने आपातकाल लागू कर दिया। संजय गांधी (Sanjay Gandhi) ने इस दौरान आपातकाल के प्रशासन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने आपातकाल के दौरान, नसबंदी अभियान का नेतृत्व किया, जिसका विरोध पूरे देश मेँ हुआ था। आपातकाल के दौरान, संजय गांधी को कई लोगों ने एक निरंकुश और दमनकारी नेता के रूप में देखा।
इंदिरा गांधी की चुनाव में हार
1977 में, इंदिरा गांधी (Sanjay Gandhi) की सरकार चुनाव में हार गई और इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा। संजय गांधी भी इस चुनाव में हार गए। 1980 में, इंदिरा गांधी की सरकार फिर से चुनाव में जीत गई और इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बनीं। संजय गांधी को इस बार, उत्तर प्रदेश के रायबरेली से लोकसभा में चुना गया।
संजय गांधी के (Sanjay Gandhi) जीवन के कुछ महत्वपूर्ण पहलू हैं
बचपन से ही कारों का शौक
स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, इंग्लैंड में रोल्स-रोयस कार कंपनी में तीन साल तक इंटर्नशिप
भारत लौटने के बाद, अपनी माँ, इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन में सक्रिय भूमिका निभाना
1971 में, बिना किसी पद के विशेष सलाहकार के रूप में अपनी माँ की सरकार में शामिल
1975 में, आपातकाल के दौरान, नसबंदी अभियान का नेतृत्व
1977 में, आपातकाल के दौरान, चुनाव में हार
1980 में, अपनी माँ की सरकार की चुनाव में जीत और रायबरेली से लोकसभा में चुने गए
23 जून, 1980 को, एक विमान दुर्घटना में मृत्यु
इंदिरा गाँधी की राजनीति
इंदिरा गाँधी की राजनीति का चाहे आप समर्थन करते हो या नहीं करते, लेकिन हम सभी लोग ये मानते ही है कि एक राजनेता के तौर पर इंदिरा गाँधी एक काफी बड़ी हैसियत रखती थीं । इंदिरा गाँधी वो प्रधानमंत्री थीं जिसने भारत में भी इमर्जेन्सी लगाकर लगभग हमें वापस गुलामी में रहने का एहसास करवा दिया था।
संजय गाँधी ने इंदिरा गाँधी को 6 थप्पड़ मारे थे।
एक दावा है जो वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकार लुईस एम सिमंस करते आए हैं। दवा ऐसा कि सुनकर यकीन नहीं होता। उनका कहना है कि एक डिनर पार्टी के दौरान इंदिरा के छोटे बेटे ने उनसे नाराज होकर उन्हें सभी मेहमानों के सामने छे थप्पड़ मारे थे।
लुईस एम सिमंस दावा करने वाले पत्रकार को पत्रकारिता की दुनिया के नोबेल कहा जाता था। संजय गाँधी (Sanjay Gandhi) इंदिरा के छोटे बेटे थे लेकिन वो पॉलिटिक्स मैं शुरू से ही सक्रिय थे। उनमें एक अलग ही आग थी राजनीति में घुसने की।
संजय गाँधी (Sanjay Gandhi) एक एक कर अपनी माँ के करीबी साथियों को उनसे दूर किए जा रहे थे और एक वक्त वो उनके राइट हैंड मैन भी हो गए। ये माना जा रहा था कि अगर इंदिरा के बाद पार्टी संभालने वाला कोई होगा तो वो संजय गाँधी ही होंगे।
एमर्जेंसी का समय
उनकी छवि एक राजनीतिक गुंडे जैसी थी एमर्जेंसी लागू होने के बाद तो संजय (Sanjay Gandhi) की ताकत में और इजाफा हो गया। वो संजय गाँधी ही थे जो लोगों को पकड़ पकड़ कर जबरन नसबंदी करवाने वाले प्रोग्राम को लीड कर रहे थे। हमारी कहानी भी एमर्जेंसी के दौरान की है।
लुईस ने किया इंदिरा और संजय गाँधी का खुलासा
जब साल 1976 में थप्पड़ मारने की घटना हुई ये कहानी दुनिया के सामने आयी इसलिए इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने लुईस को देश से निकाल दिया क्योंकि उस वक्त मीडिया को उनके खिलाफ़ कुछ भी छापने पर मनाई थी।
लुईस ने उनकी सरकार द्वारा इमर्जेन्सी के दौरान की जा रही बर्बरता पर लेख लिख दिया था। एक इंटरव्यू में लुईस ने इस घटना पर खुलकर बात की जब उनसे पूछा गया कि उन्हें ये बात कैसे मालूम पड़ी कि पार्टी में संजय गाँधी (Sanjay Gandhi) ने इंदिरा को छह थप्पड़ मारे। तो लेविस ने बताया उस पार्टी में उनके जानने वाले कुछ लोग मौजूद थे।
संजय गाँधी की प्लेन क्रैश में हुयी मौत पर संदेह
23 जून 1980 की तारीख याद आती है जब संजय गाँधी (Sanjay Gandhi) का प्लेन दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है और इस दुर्घटना में संजय गाँधी की मौत हो जाती है। संजय गाँधी कुशल पायलट और उस दिन भी खुद ही प्लेन उड़ा रहे थे।
1 दिन पहले ही संजय गाँधी (Sanjay Gandhi) इस प्लेन में अपनी पत्नी मेनका गाँधी को घूमाने भी निकले थे। फिर अचानक से प्लेन क्रैश करना समझ नहीं आया। कुछ लोगों ने इसके पीछे इंदिरा गाँधी के हाथ होने की बात भी गयी थी।
सबूत के तौर पर लोग संजय गाँधी की मौत के बाद इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के उस प्लेन क्रैश वाले स्थल को की गई दूसरी विज़िट को पेश करते हैं। ये लोग कहते हैं कि इंदिरा गाँधी उस जगह दो बार गयी थी क्योंकि शायद संजय के पास एक डायरी और कुछ लॉकर्स की चाबियां में थी जो इंदिरा गाँधी को चाहिए थी।
संजय की पत्नी मेनका गाँधी को घर से निकाल दिया गया
कुछ घटनाएं और भी हैं जो बताती है कि शायद इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) और संजय के बीच सबकुछ ठीक नहीं था। संजय गाँधी की मौत के पास 2 साल बाद ही उन्होंने उनकी विधवा पत्नी मेनका गाँधी को उनके 3 साल के बच्चे वरुण गाँधी के साथ घर से निकाल दिया था और तब से अब तक ये लोग गाँधी परिवार से अलग ही रहते हैं।
इंदिरा गांधी (Indira Gandhi)और मेनका गांधी के बीच तनावपूर्ण संबंधों का सबसे महत्वपूर्ण कारण 1980 में एक विमान दुर्घटना में संजय गांधी की असामयिक मृत्यु थी। संजय न केवल इंदिरा के बेटे थे, बल्कि उनके राजनीतिक विश्वासपात्र और उत्तराधिकारी भी थे। उनके आकस्मिक निधन ने उनके व्यक्तिगत जीवन और राजनीतिक परिदृश्य दोनों में एक शून्य छोड़ दिया।
कुछ राजनितज्ञ संजय गाँधी की मृत्त्यु आज तक एक रहस्य के रूप में देखते हैं।
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