Rajneeti Bani Rakshas Neeti Kursi Ke Moh Mein Andhe Hue Rajneta

राजनीति बनी राक्षस नीति कुर्सी के मोह में अंधे राजनेता 

राजनीति बानी राक्षस निति

राजनीति बानी राक्षस निति आपको एक उदहारण देकर बताता हूँ जिससे आप ठीक से समझ पाए। आप सभी ने कभी न कभी एक जानवर के बच्चो को जरूर देखा होगा। इसको वफादार जानवर कहा जाता है इसके 4,6 बच्चे होते हैं इसके छोटे बच्चे बहुत प्यारे होते हैं। लेकिन जब धीरे धीरे बड़े होते हैं तो इनमे कुछ ताकत वर और कुछ सेहत से कमजोर हो जाते हैं। अगर आप इनको खाना डालेंगे तो जो ताकतवर होता है वो कमजोर को खाने नहीं देता। कमजोर के मुँह से ये ताकतवर उसका खाना भी छीन लेता है। आप समझे की जो ताकतवर है किसी भी तरह से वो कमजोर को जीने नहीं देता उसको लगता है की यदि ये मेरे बराबर हो गया तो मै इसका इस्तेमाल अपने लिए नहीं कर पाउँगा। राजनीति या राक्षस निति इसी से प्रेरित है कमजोर जनता उसको बेफकूफ बनाओ जबरदस्ती इलेक्शन कराओ और कुर्सी से चिपक जाओ। जो राज नेता जनता के शेयर राजनेता बाटे हैं वही उनका शोषण भी करते हैं। जनता अपनी आँखों से सब मूक दर्शक बन कर देखती रहती है। 

अंबेडकर ने अकेले नहीं लिखा संविधान, 299 विद्वानों की मेहनत का नतीजा है संविधान

भारत का संविधान 2 साल 11 माहिने 18 दिन में बन कर त्यार हुआ । साल 1947 तक संविधान सभा के कुल सदस्यों की संख्या 389 थी जिसमें से 292 सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, 93 प्रतिनिधि प्रांतीय राज्यों से और चार प्रतिनिधि दिल्ली, अजमेर-मारवाड़ा, मादिकेरी(Madikeri) के पास Coorg और ब्रिटिश बलूचिस्तान के चीफ कमिश्नर थे । ड्राफ्टिंग समिति के अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर थे। भारत के संविधान की इज्जत भारत को हर नागरिक करता है। इसकी भाषा इतनी कठिन है की आम आदमी पढ़ कर समझ नहीं सकता। पर आपको मै ये बताना चाहता हूँ की संविधान देश के आम लोगो के लिए भी है। पर इसको बनाते समय कोई आम आदमी नहीं था और बाद में इसको आम लोगो पे थोप दिया गया।

संविधान और क़ानून का डर नेताओ को नहीं

Rajneeti

अब आप इसको असर देख सकते हैं एक राज्य का मुख्यमंत्री किसी महिला को आईटम बोलता है। शर्म भी नहीं आती इनको। एक नेता जी जिनके पिताजी जेल में हैं जब रैली में जाते है तो एक दिव्यांग उनको चप्पल मारता है। उसने चप्पल क्यों मारी? उसको मौका मिला सबको नहीं मिलता इसलिए बजा दी चप्पल । ये लोग चुनाव रैली में नजर आते हैं। रैली के बाद मिस्टर इंडिया बन जाते हैं। अगर ये रोज जनता के सामने आये तो इसको रोज चप्पल पड़े। नेताओ की सिक्युरिटी इसलिए दी जाती है की कोई चप्पल ना मार दे मुँह पर। (जूतम पैजार) तो होती रहती है इनकी कभी स्याही फेक मुँह कला किया जाता है कभी गालिया दी जाती हैं। पर प्रणाम है इनकी बेशर्मी को।

कुर्सी की भूक में गयाब कोरोना

हमारे बिहार में इलेक्शन को जोर है। प्रधान मंत्री कहते हैं 2 गज की दूरी रखो और इधर 10 हजार लोगो का मेला लगा दिया जाता है। बिहार में कई रैलिया हुंई हमारे लालू जी जो जेल में फसे है उनके बेटे जब रैली करते हैं। तो न खुद मास्क लगाते ना मास्क लगाने को कहते है। और एक आम आदमी अगर बिना मास्क के अकेले मिलता तो पुलिस जरूर 200 रूपये का चालान काट देती। जब हमारे भारत वर्ष में कोरोना के केस कम थे तब कोई नेता नहीं दिखा। और आज जब बिहार में चुनाव है तो ये सारे अपने बिलो से बाहर आ गए। इनको कोरोना हुआ तो ये तो अपना इलाज करवा लेंगे। पर जिस जनता को ये बेफकूफ बना रहे हैं उनका इलाज कौन कराएगा।

दो गज की दूरी गरीब का मजाक

Government

प्रधान मंत्री जी कहते हैं की 2 गज की दूरी बनाये रखे। तो मै पूछता हूँ। की किसी गरीब के घर जाकर देखिये जहां 8*8 के कमरे में जिसके चार बच्चे हैं वो आपकी इस बात से कोई सरोकार नहीं रखता। २ गज की दूरी बड़े बड़े नेता रख सकते हैं। जिनके महल सरकारें बनवाती हैं। एक गरीब आदमी जो कमाने के लिए दिनभर बाहर रहता और और जब घर जाता है। तो या तो घर के बाहर सोये या सड़क पर। जब हमारे भारत वर्ष में कोरोना के केस कम थे तब कोई नेता नहीं दिखा। और आज जब बिहार में चुनाव है तो ये सारे अपने बिलो से बाहर आ गए। इनको कोरोना हुआ तो ये तो अपना इलाज करवा लेंगे। पर जिस जनता को ये बेफकूफ बना रहे हैं उनका इलाज कौन कराएगा।

क्या अभी इलेक्शन होना बहुत जरूरी था ?

इलेक्शन

हमारा पूरा देश कोरोना से करहा रहा है। और दूसरी तरफ बेहूदा राजनेता कुर्सी के लिए किसी भी हद तक जाने को आतुर हैं। क्या ये इलेक्शन आगे नहीं बढ़ सकता था। क्या लोग कोरोना के लिए बनाये गए उनका पालन कर पाएंगे। जो नेता रैलियों में नियम की धज्जियां उड़ा रहे हैं वो इलेक्शन में मतदाता को नियम पालन के लिए कहेंगे। अब एसा प्रतीत होता है की अगर राजनीती को बंद नहीं किया गया तो देश गड्ढे में चला जायेगा। हमारे देश की जीडीपी जो -२३% निचे चली गयी है इलेक्शन के बार ठीक हो आएगी। कितना पैसा खर्च करते हैं नेता ये पैसा कहा से आता है। क्या इनको बाहर से फंडिंग होती कुछ पता नहीं।

संविधान में बदलाव की जरूरत

हमारे देश में संविधान के कुछ नियम बदलने की जरूरत है। लेकिन सरकार ये नहीं करेगी क्योकि इसका सीधा असर उनकी जेब और कालेधन पे पड़ेगा। हमने देखा है एक 10वीं पास नेता उससे कंही ज्यादा पढ़े लिखे आईपीएस आईएएस को कुछ नहीं समझता। उनको उँगलियों पर नाचते हैं अनपढ़ नेता। जिस देश में विद्द्या की इज्जत नहीं होगी तो आप सोचिये क्या होगा। इलेक्शन में खड़े होने के लिए क्यों कोई नियम नहीं बनाये जाते। फालतू और अनपढ़ लोगो को नेता बना दिया जाता है। कुछ बाहुबली तो जेल से ही इलेक्शन में खड़े हो जाते हैं। इससे साबित होता है की संविधान और कानून इन नेताओ के लिए नहीं बना है।
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