Forgetting the Knowledge of Dhanurveda is Our Biggest Mistake

धनुर्वेद के ज्ञान को भुला देना Forgetting the Knowledge हमारी सबसे बड़ी भूल थी वरना पूरी दुनिया पर हम राज करते 

Dhanurveda
हमारे प्राचीन देश ने धर्म दर्शन,विज्ञान के साथ युद्ध कला (Dhanurveda) में बहुत पहले ही पूर्ण रूप से उन्नति कर ली थी। हमारे विमान इच्छा अनुसार आकाश मेंउड़ा करते थे हमारी तोपों, बंदूकों, शतघ्नियों, भुशुंडियों,विधुतअस्त्र,मोहनास्त्र,अंतधारत्रयस्त्रा,वारुड़ोन्यास्त्र,वायवास्त्र,आग्रेयस्त्रा,पजरणयष्टृ,मौनास्त्र,पिनाकास्त्र,बिलापगास्त्र,तामास्त्र,मातास्त्र,सौधास्त्र,वज्रास्त्र,ब्रह्मास्त्र,कोङ्गास्त्र और ऐसे ही कई अस्त्रों के आविष्कार के कारण हमारा दुनिया पर चक्रवर्ती शासन था। हमारी युद्ध कला दुनिया में सबसे उन्नत थी और युद्ध ज्ञान से सम्बंधित एक उप वेद था इस का नाम था धनुर्वेद (Dhanurveda)

सनातन धर्म में 4 मुख्य वेद और उपवेद हैं जैसे 

  1. ऋग्वेद का उपवेद था (आयुर्वेद)
  2. यजुर्वेद का  उपवेद था (धनुर्वेद)  
  3. सामवेद का उपवेद था (गन्धर्ववेद) 
  4. अथर्ववेद  का उपवेद था (शिल्पवेद) 

धनुर्वेद (Dhanurveda) में युद्ध कला से जुडी कई गुप्त बातें थीं इस वेद में अस्त्र शस्त्र बनाने की गुप्त बातें थी। यदि ये गुप्त बातें कोई जान ले तो वह दुनिया में हाहाकार और विनाश मचा सकता था। इसलिए हमारे ऋषिओ ने इसको छुपा कर रखा था। लेकिन इस वेद से जुडी जानकारियां हमारे वेदो पुराणों,धनुर संहिता और माहभारत में मिलती हैं,आज आप इस आर्टिकल में धनुर्वेद वेद से जुडी कई जानकारियां जानेगें। जिसे जान कर आप भी अपने गौरवशाली इतिहास को जान कर गर्व करेंगे।

Table of Contents

 

धनुर्वेद (Dhanurveda) के अनुसार शिव जी ने सबसे पहले परशुराम को धनुर्वेद का उपदेश दिया, उसके बाद विश्वामित्र, वशिष्ठ,राम, द्रोणाचार्य,भीष्म ने धनुर्वेद का उपदेश प्राप्त किया।

 

धनुर्वेद यद्ध के चार पहलुओं को दर्शाता है

  • हतियार और प्रशिछण (Weapons and Training)
  • सेन का निर्माण (Army Construction)
  • युद्द की रणनीति (Strategy of War)
  • युद्द की नैतिकता (War Ethics)

प्रशिछण (Weapons and Training)

Weapons

धनुर्वेद (Dhanurveda) में श्लोक में हतियारो के चार प्रकार बताये गए हैं 

1. मुक्त हतियार मुक्त हतियार के भी दो प्रकार हैं

(i)यन्त्रमुक्त– इसमें श्रेपणी,भुशुण्डि (बन्दूक),शतघ्नि (तोप) होते थे याद रहे वैदिक काल में भी बन्दूक और तोप जैसे हतियार थे।   

(ii) पाणीमुक्त- इस श्रेणी में चक्र जैसे हतियार जो हातो से मारे जाने वाले हतियारो का समावेश हुआ करता था।

2. अमुक्त हतियार- इन हतियारो को हाथ से चलाया जाता है जैसे तलवार,चुरा इत्यादि। 3. मुक्तामुक्त हतियार- ये हतियार ऐसे होते हैं जिनको युद्ध की दशा के अनुसार फेक करऔर बिना फेक कर इस्तेमाल होते थे जैसे फरसा, भाला आदि।

4. मन्त्रयुक्त हतियार- ये चौथे प्रकार के हतियार हुआ करते थे। इसमें मंत्रो सिद्ध किये हुए हतियार आते थे जैसे धनुष बाण

अब हम जानते हैं युद्ध के प्रकार 

धनुर्वेद के अनुशार युद्ध के सात प्रकार बताये गए हैं।

  1. धनुष युद्ध
  2. चक्र युद्ध 
  3. भला युद्ध 
  4. खड़क यद्ध 
  5. छुरा युद्ध 
  6. गदा युद्ध 
  7. बाहू युद्ध 

धनुर्वेद (Dhanurveda) में इन सात प्रकार के युद्ध की कलाओं को विस्तार से बताया गया है, किस प्रकार युद्ध में उपयोग किये जाने वाले हतियार और उनका ठीक तरह से से इस्तेमाल कैसे करें इसका बारीकी से वर्णन किया गया था। उद्धरण के लिए यदि हैं धनुर विद्या को ही लेलें तो इस धनुर्विद्या में धनुष को किस से और कैसे बनाना है ? बाण कैसा होना चाहिए ,बाण की प्रत्यंचा कैसी होनी चाहिए। लक्ष कितने प्रकार के होते हैं इनके बारे में सब बताया गया है।

धनुर्वेद में धनुष चलने के बारे में बताया गया है।

धनुष – साढ़े पाँच हाथ लंम्बा धनुष सबसे श्रेष्ठ होता है ऐसा धनुष देवताओं का धनुष कहलाता था। धनुष चार तरह की धातुओं सोना,चाँदी,तांबा,और काला लोहा से बनाया जाता था। इसके अतिरिक्त कश्मीर में पाए जाने वाले शरभ नाम के महा मृग के सींगो से भी धनुष बनाया जाता था। तीसरे प्रकार के धनुष चन्दन,बांस,शाल्मली,धान्वन,शाल,ककुभऔर आबनूस की सखाओं से भी धनुष बनाया जाता था।

प्रत्यंचा- धनुष में बंधी जाने वाली डोरी को प्रत्यंचा,गुणा,मौर्वी,और जीवा कहा जाता है। यह प्रत्यंचा रेशम,हिरन या भैंसे की तान से बनायीं जाती थी। इसके अतिरिक्त पके हुए बांस,कपास,मूंज,आक से भी प्रत्यन्चा को बनाया जाता था। 

बाण- बाण तीन प्रकार के होते थे 

स्त्रीबाण – इस प्रकार का बाण पुरुष बाण की अपेक्छा आगे से मोटा होता है इसे अधिक दूरी के लक्ष को मारने के लिए प्रयोग किया जाता था।

पुरुष बाण- परुष बाण पीछे से भारी होता है यह कम दूरी के लिए इस्तेमाल किया किया जाता था। इसको मजबूत और कठोर पदार्थ को भेदने के लिए बनाया जाता था। 

नपुंशक बाण- यह बाण एक समान भार का होता था और इसको निशाना सिखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। 

बाण का फल

बाण के अगले भाग को बाण का फल कहा जाता है और इन बाण फलो को अपनी जरूरतों के अनुशार भिन्न आकारों में बनाया जाता था।

 

आरामुख फल – इस बाण का उपयोग ढाल छेदन की लिए किया जाता था। क्षुरप्र फल – इसका उपयोग हाथ काटने के लिए। 

गोपुच्छ फल – इसका उपयोग का निशाना सीखे के लिए किया जाता था। 

अर्धचंद्र फल – इसका उपयोग जीवा या बाण काटने के लिए किया जाता था।  

सुचोमुख फल – इसका उपयोग बख्तर छेदन के लिए किया जाता था। 

भल्लफल – इसको ह्रदय पर मारा जाता था।

वतसदन्तफल – इससे से धनुष को काटा जाता था।

द्विभल्ल फल – इसका उपयोग बाण को रोकने मे होता था। 

कर्णिक- इससे लोहे के बाण काटे जाते थे। 

काक तुण्ड- इस बाण का उपयोग झटके को उत्पन्न करने के लिए होता था।

धनुर वेद बाण के फल को विषाक्त बनाने की विधि भी बताता है

baan_ka_fal

इस श्लोक में बताया गया है की सरकण्डे की जड़ को स्वाति नछत्र में बाण के फल पर लगाने से बाण का फल जहरीला हो जाता है। और ऐसा बाण का घाव असाध्य बन जाता है।

अस्त्र और शस्त्र

अस्त्र और शस्त्र दोनों में अंतर बताया गया है अस्त्र उसे कहते जो मंत्रो द्वारा दूर से चलाया जाता है। वही शस्त्र खतरनाक हतियार होते हैं जिनके प्रहार से चोट पहुँचती है और मृत्यु भी हो जाती है। युद्ध में शस्त्रों का उपयोग अधिक किया जाता है। 

एक श्लोक में सात शस्त्र के बारे में बताया गया

दिव्यास्त्र

  • ब्रह्मास्त्र 
  • ब्रह्ममदण्ड
  • ब्रह्मशिरा 
  • पाशुपास्त्र 
  • वायव्यअस्त्र 
  • अग्नि अस्त्र 
  • नरसिम्हा अस्त्र

इसके आलावा अन्य कई शस्त्रों का उल्लेख वेदो में किया गया है।

लक्ष्य

धनुर्वेद में चार तरह के लक्ष्य बताये गए हैं।

  1. जब धनुर्धर स्थिर हो और लक्ष्य भी स्थिर हो ऐसे लक्ष्य को स्थिर लक्ष्य खा जाता है। 
  2. जब धनुर्धर स्थिर हो और लक्ष्य चल रहा हो ऐसे लक्ष्य को चललक्ष्य कहा जाता है। 
  3. जब धनुर्धर चल रहा हो और लक्ष्य स्थिर हो ऐसे लक्ष्य को चलाचल लक्ष्य कहा जाता है। 
  4. जब धनुर्धर चल रहा हो और लक्ष्य भी चल रहा हो ऐसे लक्ष्य को द्वियचल लक्ष्य कहा जाता है।

लक्ष्य भेदने की युक्तियाँ

धनुर्वेद में लक्ष्य भेदने की युक्तियों में 8 तरह की स्तिथियाँ बताई गयी हैं।

    1.प्रत्यालिढ     2.आलीढ़     3.विशाखा     4.संपाद     5.अशमपाद     6.दद्ररक्रम     7.गरुणक्रम     8.पदमशन

गणमुष्टि

धनुष को प्रत्यंचा पर पकड़ने को गणमुष्टि कहा जाता है।

     1.गणमुष्टि के भी पॉँच प्रकार बताये गए हैं

    2.वज्रामुष्टि 

    3.सिघ कर्णी

    4.मत्सरी 

    5.काकटुष्णी

    6.एकलभ्य

व्याय-

धनुष की प्रत्यंचा खींचने को व्याय कहते हैं इसके भी पॉँच प्रकार हैं।
    1.कौशिक
    2.सात्विक
    3.वात्स्यकरणी
    4.भरत
    5.स्कंध नामा 

सेना का निर्माण (army Construction )

sena_nirmaan

धनुर्वेद में सेना निर्माण को बहुत बारीक़ तरीके से बताया गया है।

महाभारत से हमें सेना निर्माण के बारे में बहुत सी महत्त्व पूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं। महाभारत के कुरुछेत्र में पांडवो और कौरवो दोनों की संयुक्त 18 अश्रोणी सेना तैनात थी। जिसे हम 18 बटालियन भी कह सकते हैं लेकिन यह अश्रोणी सेना कैसे बनती है अश्रोणी सेना के बारे में हमें एक श्लोक मिलता है। 

sena_aadi_mahabharat

अब देखते हैं इसका क्या मतलब है? नर का अर्थ है पैदल सैनिक,अस्व का अर्थ है घुड़सवार,रथ का अर्थ है रथ और दन्ति का अर्थ है हांथी। अब आपको क्या दिखाई देता है।

chess_play

हाँ ये सतरंज है इन चारो को सेना के चार विभाग कहा जाता था जिससे शब्द बना चतुरंग जिसे प्राचीन काल में चतुरंगी सेना भी कहा जाता था। इसी से युद्ध कला का एक खेल बना चतुरंग समय के बीतने के साथ साथ इस नाम को बदल कर सतरंज कर दिया गया। अब आप समझ सकते है की सतरंज का खेल कितना पुराना है और इसका जन्म कहाँ हुआ था।

आईये अब अश्रोणी सेना के बारे में जानते हैं।

सेना का सबसे छोटा भाग पत्ती कहलाता था इसमें पांच पैदल सैनिक,तीन घोड़े,एक हाथी,और एक रथ होता था। 

तीन पत्ती का एक सेनामुख
तीन सेनामुख का एक गुल्म
तीन गुल्म का एक गण
तीन गण की एक वाहिनी
तीन वाहिनी का एक प्रूतना
तीन प्रूतना का एक चमू
तीन चमू का एक अनीकनी
दस अनीकनी की एक अश्रोणी सेना बनती थी 

 

महाभारत में दोनों ओर से कुल 18 अश्रोणी सेना थी। 

एक अश्रोणी सेना में 21 हजार 870 रथ, 21 हजार 870 हांथी,65 हजार 610 घोड़े और 19 हजार 350 पैदल सैनिक होते थे। 

तो इस तरह आपने जाना प्राचीन समय में भी हमारी सेना कितनी शुव्यवस्तिथ होती थी। इसके आगे का वर्णन जानने के लिए जल्द ही आपको एक नया आर्टिकल मिलेगा अगर आर्टिकल अच्छा लगा हो तो एक मैसेज जरूर करे और हमारे ब्लॉग https://www.umesh4you.in (Trending Gyaan 4 You) को फॉलो करें। 

धन्यवाद !

1 thought on “Forgetting the Knowledge of Dhanurveda is Our Biggest Mistake”

Leave a Comment